ज़ख्मों को हरा मत कर
अब उसका तज़किरा मत कर
मेरे ज़ख्मों को हरा मत कर
ग़मे जुदाई फिर सहा जाता नहीं
बेहतर है मुझ से मिला मत कर
जो हाथ की लकीरों में नहीं लिखा
वो नाम हथेली पे लिखा मत कर
कहीं लोग सज़दा न समझने लगें
कभी इतना भी झुका मत कर
यह ग़लती का मलाल नहीं करते
इन पत्थरों से शिकवा मत कर
नहीं समझता है तो न समझ ‘अर्श’
मेरी बातों का गलत तर्जुमा मत कर