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1 Oct 2016 · 1 min read

जहाँ में चाँद सा ऊँचा नहीं है

जहाँ में चाँद सा ऊँचा नहीं है
सदा वो आसमाँ उजला नहीं है

चला जाये सदा को छोड़ दुनियाँ
जमीं ये घर कभी तेरा नहीं है

कमाया पाप तूने जिन्दगी में
यहाँ से जो चला नाता नहीं है

हसीं हसरत दिखायी आज तूने
जिसे देखा जिया खोया नहीं है

गयी जो दूर इतना तू यहाँ से
बिना तेरे रहा जाता नहीं है

मुझे जो याद तेरी क्यों सताती
गमों की थाह से निकला नहीं है

मुहब्बत धर्म मेरे इस जहाँ का
किसी की जान का सौदा नहीं है

मिला वो जब बहुत अरसे बाद तब
बिछुड़ कर के हमें भूला नहीं है

मिलेगी राह परवाने कहाँ तक
अभी कोई उसे वादा नहीं है

डॉ मधु त्रिवेदी

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