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12 Jul 2017 · 1 min read

जहाँ भर में

जहां भर में अमन का ग्राफ़ नीचे जा रहा है
जिसे देखो वही तलवार खींचे जा रहा है

क़लम से काटनी थी नफ़रतों की पौध जिसको
वही अब नफ़रतों की पौध सींचे जा रहा है

हमें उपदेश देता था हमेशा अम्न के जो
वही हाकिम वो देखो आँख मीचे जा रहा है

कबूतर अम्न का है बम धमाकों से परेशां
कभी इसके कभी उसके दरीचे जा रहा है

भर आया नाव में पानी मगर नाविक है ज़िद पर
वो अँजुरी बाँध कर पानी उलीचे जा रहा है

……………..शिवकुमार बिलगरामी

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