जलाकर दिये चाँद को भी रिझाओ
जलाकर दिये चाँद को भी रिझाओ
अमावस को पूनम के जैसा बनाओ
मिटाना अगर अन्धविश्वास जग से
दिये ज्ञान के भी दिलों में जलाओ
भले ज़िन्दगी में घिरे हो अँधेरे
उसे आस बस रोशनी की बँधाओ
बुझा देंगी ये प्यार के दीप सारे
नहीं आँधियाँ नफरतों की चलाओ
बिगाड़ेंगे ये संतुलन इस धरा का
पटाखे चलाकर धुआँ मत उड़ाओ
दिखाना उसे पहले अपना भी चेहरा
अगर आइना दूसरे को दिखाओ
तुम्हारे ही सँग कारवाँ चल पड़ेगा
मगर’अर्चना’ दो कदम तो बढ़ाओ
डॉ अर्चना गुप्ता