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21 Jun 2021 · 4 min read

जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की 218वीं -आज की समीक्षा दिनांक-21-6-2021

218वीं -आज की समीक्षा
समीक्षक – राजीव नामदेव राना लिधौरी’

दिन- सोमवार *दिनांक 21-6-2021

*बिषय- “बेला” (बुंदेली दोहा लेखन)
आज पटल पै बेला बिषय पै दोहा लेखन कार्यशाला हती।आज बेला से महकते दोहे रचे पढ़के मन प्रसन्न हो गऔ। सो जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नये बिषय पै नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो। आज पकल पै दो नये साथी भी जुड़े। उन्होंने ने भी भौत नोने दोहा रचे बधाई।
आज सबसें पैला श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा ने अपने 5 नोने दोहा पटल पर रखे- आफने अपने दोहे में यमक अलंकार का शानदार प्रयोग किया है बधाई।
बेला आयी टोर कें,बेला भर जब फूल।
बेला महकन सें लगै,गलियन महकी धूल।।
बेला कली खिली नहीं,बेला खिल खिल जाँय।
बेला के गजरा पहिन,बेला मन मुस्काँय।।

2राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़ ने लिखा है कि जब सोलह सिंगार करके और बेला को गजरा लगा के गोरी कड़ती हैं तो दिल के सितार अपने आप ही बज उठत है।
बेला से महकें सदा,मन को जो हर्षाय।
खुश्बू ऐसी होत है,दिल में जो बस जाय।।
बेला कौ गजरा सजो,कर सोलह सिंगार।
उनको रूप निहारते,दिल के बजत सितार।।

3 श्री सरस कुमार जी ,दोह खरगापुर ने अपने दोहों में बगिया का सुंदर चित्रण किया है बधाई।
बेला बगियन में खिले, हरसत भौरा,मोर ।
मेंढक, चिड़ियाँ, तितलियाँ, बोल रहे घन – घोर ।।
खुशबू फेली है इते, बेला की है बेल ।
भौरा, तितली खेलते, बना बना कर रेल ।।

4 श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु बडागांव झांसी उप्र. से कै रय कै बेला से सजी सेज और जूडे में बेला घायल कर देत है। श्रृंगार के बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
बेला चुन चुन के रखे, उसने फूल सहेज।
प्रिय के आते ही सजा, फिर गोरी का सेज।।
होंठों पर मुस्कान है, नैना तीर कमान।
जूड़े में बेला गुथी, घायल मन नादान।।
5 श्री अशोक पटसारिया जी नादान खुश्बूदार पौधे के नाम बता रय है-उमदा टकसाली दोहे है बधाई।
बेला चंपा चमेली, गुड़हल पारिजात।
गंधराज मधुकामनी,जुही सुंगंध लुटात।।
बेला कहै गुलाब से,सुन रंगीन मिजाज।
तुमसे ज्यादा मोंगरा,पारिजात कौ राज।।

6 श्री शोभारामदाँगी नंदनवारा से सुंदर दोहे लिखते हैं-
बेला सैं बेला कहे, छोड़ न दइयो संग ।
अपन साजे लगैं, पर मन होवैं चंग ।।
बेला बेला ले चली, चंपा चमेली द्वार ।
गुलाब जूही संग हैं, ये पारिजात कचनार।।

7प्रदीप खरे,मंजुल पुरानी टेहरी, टीकमगढ़ बेला शब्द का नोनौ प्रयोग करो है। बधाई।
बेला जूड़े में बदो, महक जात है मीत।
नारी सज नौनी लगे,होबै गाड़ी प्रीत।।
बेला की बेरा गई, बेलहिं बेरा आइ।
चौथेपन संगे रहे, लाठी, तेल, दवाइ।।

8 श्री परम लाल तिवारी, खजुराहो से सीता जी के गिरजा पूजन को भौत नौनौ दृष्य दोहा में खींचा है बधाई।
बेला की माला धरी, और सजाई थाल!
गिरजा पूजन को चली, सीय सहित सब बाल!!
आवन की बेला भई, गिरिजा पूजन सीय!
बेला, तुलसी बाग से, लावो चुन कमनीय!!

9 श्री संजय श्रीवास्तव, मवई, (दिल्ली) से कमल और बेला की तुलना की है। सभी दोहे बढ़िया है बधाई।
बेला बोली कमल से,तुम सत्ता आसीन।
मैं रानी खुशबू भरी,तुम खुशबू सें हीन।।
मन बेला- तन मोगरा,जीवन बने गुलाब।
करमन की खुशबू उड़े,बनकें पर सुरखाब।।

10 श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़ ने श्रृंगार के नौनै दोहे रचे है बधाई।
बेला कीं कलियां खिलीं,भोंर रये गुंजार।
बेला सुखद सुहावनी , प्रीतम लेव निहार।।
बेला तौ फूलन लगी,हो ग‌इ आदी रात।
बेला बैठीं बाट में ,बेदरदी कब आत।।

11 राजगोस्वामी दतिया बेला की बेल के गुण बता रहे हैं-
बेला की जा महक मे ऐसी महकी गंध ।
डूबे जा की गंध मे पा दूनौ आनंद ।
दीवारन पै फैल गइ लंबी बेला बेल ।
हरी भरी फूली फली करत अनोखौ खेल ।।

12 श्री कल्याण दास साहू “पोषक”, पृथ्वीपुर कत हैं के बेला की महक चारो और फैलती है। अच्छे दोहे है बधाई।
महकत रावै मोगरा , महके बाखर-दोर ।
फूलन की शोभा-सुरभि , फैलत रय चहुँओर ।।
फूलै बेला – मोगरा , छायी रबै बहार ।
महकत रय परयावरन , महके घर-संसार ।।

13 श्री रामानन्द पाठक नन्द नैगुवां से लिखते है कै बेला की खुशबू आदमी तो क्या सांपो तक को बहुत भाती है।
बेला में है महक अति,मन प्रसन्न हो जाय।
मानस की तौ बात का,सर्प निबास बनाय।।
बेला सें नारी सजी,जूडौ गजरा भाय।
सुन्दरता संग महक सें,सोभा अति बड जाय।।

14 श्री वीरेन्द्र चंसौरिया जी लिखते है कै बेला की खुशबू रात भर आती रहती है।
बेला खुशबू दार है,सबके मन खों भाय।
सबरे फूला टोर कें, माला लेव बनाय।।
महका बेला रात में,खुशबू रव फैलाय।
इसकी खुशबू सूंघकें,मन हरषित हो जाय।।

15 श्री मनोज कुमार सोनी रामटौरिया बेला के औषधीय गुण बता रय है बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
बेला पत्ता टोरकें,काढौ़ लेव बनाय।
करौ गरारे चार दिन,मुख विकार मिट जाय।।
बेला जर खौं पीसकें,धर लो लेप बनाय।
मुदी चोट कौ दरद हरै,मोच शमन हो जाय।।

16 श्री डी.पी.शुक्ल’सरस’ जी ने अच्छे दोहे लिखे है बधाई।
बेला माला लैे खसत,मेलत मां के कंठ ।।
गै बेला तरेर नयन, दर्शनै करकें अंट।।
रातन में बेला कली । खिलत चांदनी देख ।।
मँहक देत अंगना रहत।फरतै फूल सफेद ।।

ई तरां सें आज पटल पै 16कवियन ने अपने दोहा अपने अपने ढंग से बेला से दोहा पटल पै पटके, सभइ दोहाकारों को बधाई।
?*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*?
समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)

*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#

Language: Hindi
Tag: लेख
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