Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 May 2020 · 4 min read

‘जमाती दोषी, प्रवासी श्रमिक परेशान!!’’

आपको याद होगा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जमातियों पर कोरोना फैलाने का आरोप लगाया था. अब जब प्रवासी मजदूरों पर कोरोना फैलाने का आरोप लग रहा है, तब इस मामले में योगी ने कहा कि प्रवासियों को जमातियों से जोड़ना ठीक नहीं है. प्रवासी परेशान हैं, दुखी हैं, प्रताड़ित हैं. वह जानबूझकर कोरोना का करियर नहीं बन रहे हैं जबकि जमातियों ने जानबूझकर कोरोना फैलाया और वह पूरे देश में कोरोना वायरस के कैरियर बने.
**
इस तरह की बात कर योगी जी कोरोना के संकअ काल में भी फिर सांप्रदायिकता का खेल खेलने की कुत्सित प्रयास कर रहे हैं. योगी जी, आप आलोचकों की बात को ठीक से समझें. हम जैसे आपके आलोचकों का कहना है कि एक-दो हजार जमाती अगर कोरोना के कैरियर बन गए थे तो ये हजारों मजूदर क्या हैं, इन्हें क्या कहा जाए? हम जैसे आलोचकों ने तो सरकार के ध्यानाकर्षण के लिए यह कह रहे हैं कि सरकार के कुप्रबंधन के कारण क्या प्रवासी मजदूर कोरोना के कैरियर नहीं बन रहे हैं? सच पूछा जाए तो हम न तो जमाती को कोरोना का कैरियर मानते और न ही मजदूरों को. हम तो दोषी मानते हैं केंद्र में बैठी आपकी पार्टी की सरकार को जो बिना किसी नियोजन और बिना किसी विस्तृत प्लानिंग के लॉकडाउन जैसा बड़ा फैसला ले लिया जिसे मालूम था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक लॉकडाउन किस्त दर किस्त लंबी अवधि का करना पड़ेगा.
दिल्ली के निजामुद्दीन में एक धार्मिक आयोजन हुआ था जहां बेचारे जमाती पहुंचे थे. अचानक से घोषण कर दी गई कि जो जहां है, वह वहीं रहे. तो वे वहीं रह गए. जब उन्हें इसकी गंभीरता का अहसास हुआ तो उन्होंने स्थानीय पुलिस प्रशासन से मशविरा किया लेकिन उन्हें उल्टे ही फटकार दिया गया. वे करते भी तो क्या, बेचारे मारे डर के इधर-उधर भागने लगे. इतना बड़ा आयोजन दिल्ली में हो रहा था तो क्या स्थानीय पुलिस और एलआईबी को इसकी जानकारी नहीं थी. उन्होंने समय रहते निजामुद्दीन के मरकज के जमातियों की व्यवस्था क्यों नहीं की. बेचारे उस वक्त कोरोना की गंभीरता को क्या समझते? लेकिन मीडिया नफरत भरे दृष्टिकोण से उन्हें कोरोना कैरियर कहकर बदनाम करने लगा. कुछ मौलानाओं ने भी मूर्खता भरी बातें जरूर कीं लेकिन इधर भी कम मूरख नहीं थे. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का तो कहना था कि भारत में कोराना आ ही नहीं सकता क्योंकि यह देवी-देवताओं का देश है. उन्होंने इंदौर में कोरोनापछाड़ हनुमान विराजमान किए हैं. अयोध्या के राम मंदिर न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास ने भी इसी तरह की मूर्खतापूर्ण बकवास की कि रामनवमीं पर बड़ी संख्या में भक्त पहुंचें. स्वयं योगी आदित्यनाथ जी भी इसी दौरान लाव-लश्कर के साथ अयोध्या पहुंचे थे. मौलाना अगर मूर्ख हैं तो कैलाश विजयवर्गीय, योगी जी और नृत्यगोपालदास क्या मूर्खता में पीएचडी नहीं किए हैं?
अब लोग सवाल करते हैं कि जमाती खुद होकर सामने क्यों नहीं आए? इसका यह जवाब यही है कि शुरू से ही मीडिया ने उन्हें किसी शैतान की तरह पेश किया तो भला वे कैसे सामने आते? वैसे भी सीएए के खिलाफ किए जा रहे आंदोलन के चलते उनके खिलाफ देश में नफरत का सैलाब उमड़ रहा है. उनकी जगह जरा खुद को रखकर देखिए, तब उनका भय समझ में आएगा. इसके बाद भी उन्होंने जो नहीं किया, उसे भी झूठे तौर पर मीडिया ने प्रचारित किया. चाहे थूकने की बात हो, बोतल में पेशाब कर फेंकने की बात हो, चाहे स्वास्थ्यकर्मियों के सामने निर्वस्त्र हो जाने की बात हो. यह सारा झूठ गोदी मीडिया ने एक सत्तापक्ष के एजेंडा सेटिंग के तहत प्रचारित किया.
यही हाल मजदूरों का है. मजदूर किन हालातों पर शेल्टर कैंप में रह रहे हैं, जिनका काम छूट गया हो, और काम शुरू होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नजर नहीं आ रही हो, जेब में नामचार पैसा रह गया हो, बहुत जल्द मानसून भी आनेवाला हो, तो भला उनमें भय कैसे न बने? लॉकडाउन घोषित करने के पहले क्या इन पहलुओं पर सरकार ने सोचा था. सरकार में बैठे लोगों लॉकडाउन से देश के मजदूरों पर क्या बीतेगी, इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. देश के एक वीडियो पोर्टल पत्रकार विनय दुबे जैसे अन्य पत्रकारों ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की मांग को आवाज दी, तो उन्हें जेल में डाल दिया गया. अब वही सरकार मजदूरों की भावनाओं को समझकर आधी-अधूरी तैयारी के साथ उनकी वापसी करा रही है. इस पर हम जब सवाल उठा रहे हैं कि जिस तरह मजदूर बड़ी संख्या में पैदल झुंडों के साथ, जगह मौत का सामना करते हुए जब पलायन कर रहे हैं, तो उससे क्या कोरोना नहीं फैलेगा? अगर मजदूरों को घर पहुंचाना ही था मार्च महीने में ही सप्ताह भर के अंदर मजदूरों की यह व्यवस्था बेहतरीन तरीके से की जा सकती थी तो यह अव्यवस्था-अराजकता नहीं फैलती. जब हमारे जैसे लोग यह बात करते हैं तो मोदी-योगी एंड कंपनी हमारी बातों को सांप्रदायिक रूप देकर यह कहती है कि जमातियों की तुलना मजदूरों से न की जाए. मतलब जनता में यह नफरत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार के आलोचक हिंदुओं की तुलना मुसलमानों से कर रहे हैं…वाह मोदीजी वाह, वाह योगीजी वाह…वाह भक्तों वाह..वाह!!!

Language: Hindi
Tag: लेख
7 Likes · 3 Comments · 471 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
झील बनो
झील बनो
Dr. Kishan tandon kranti
मेरी प्यारी कविता
मेरी प्यारी कविता
Ms.Ankit Halke jha
ఓ యువత మేలుకో..
ఓ యువత మేలుకో..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
कहते हैं,
कहते हैं,
Dhriti Mishra
सफर 👣जिंदगी का
सफर 👣जिंदगी का
डॉ० रोहित कौशिक
यारो ऐसी माॅं होती है, यारो वो ही माॅं होती है।
यारो ऐसी माॅं होती है, यारो वो ही माॅं होती है।
सत्य कुमार प्रेमी
मेरे रहबर मेरे मालिक
मेरे रहबर मेरे मालिक
gurudeenverma198
नया सवेरा
नया सवेरा
AMRESH KUMAR VERMA
वार्तालाप
वार्तालाप
Pratibha Pandey
बिषय सदाचार
बिषय सदाचार
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
स्वयं छुरी से चीर गल, परखें पैनी धार ।
स्वयं छुरी से चीर गल, परखें पैनी धार ।
Arvind trivedi
Love Is The Reason Behind
Love Is The Reason Behind
Manisha Manjari
■ मुक्तक-
■ मुक्तक-
*Author प्रणय प्रभात*
अंगुलिया
अंगुलिया
Sandeep Pande
*रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा
*रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा
Ravi Prakash
अभी भी बहुत समय पड़ा है,
अभी भी बहुत समय पड़ा है,
शेखर सिंह
आज पुराने ख़त का, संदूक में द़ीद़ार होता है,
आज पुराने ख़त का, संदूक में द़ीद़ार होता है,
SPK Sachin Lodhi
कभी-कभी नींद बेवजह ही गायब होती है और हम वजह तलाश रहे होते ह
कभी-कभी नींद बेवजह ही गायब होती है और हम वजह तलाश रहे होते ह
पूर्वार्थ
देखकर उन्हें देखते ही रह गए
देखकर उन्हें देखते ही रह गए
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
रोम-रोम में राम....
रोम-रोम में राम....
डॉ.सीमा अग्रवाल
किसकी किसकी कैसी फितरत
किसकी किसकी कैसी फितरत
Mukesh Kumar Sonkar
#justareminderekabodhbalak
#justareminderekabodhbalak
DR ARUN KUMAR SHASTRI
जीवन
जीवन
Monika Verma
*दहेज*
*दहेज*
Rituraj shivem verma
ज़िंदगी को मैंने अपनी ऐसे संजोया है
ज़िंदगी को मैंने अपनी ऐसे संजोया है
Bhupendra Rawat
फ़साना-ए-उल्फ़त सुनाते सुनाते
फ़साना-ए-उल्फ़त सुनाते सुनाते
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
क्वालिटी टाइम
क्वालिटी टाइम
Dr. Pradeep Kumar Sharma
गए हो तुम जब से जाना
गए हो तुम जब से जाना
The_dk_poetry
पल पल का अस्तित्व
पल पल का अस्तित्व
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Loading...