जब क़ज़ा से सामना हो जाएगा
जब क़ज़ा से सामना हो जाएगा
आइना भी दूसरा हो जाएगा
जब ग़मों से वास्ता हो जाएगा
ज़िन्दगी क्या है पता हो जाएगा
ग़र अना के रास्ते अपना लिये
राहे-मंज़िल से जुदा हो जाएगा
दूसरों को दो सुकूनो-चैन भी
सोचना क्या सब फ़ना हो जाएगा
राज़ झूटों का खुलेगा जब कभी
फ़ासला सच में सफ़ा हो जाएगा
क़ाफ़िले को मिल सकेंगी मंज़िलें
कोई जब इक रहनुमा हो जाएगा
पार भी हो जाएंगे डूबे अगर
इश्क़ ख़ुद अपनी दवा हो जाएगा
बोल देना सोचना पहले मगर
ये न सोचो अनकहा हो जाएगा
वो ही दिन ‘आनन्द’ होगा पुरसुकूँ
क़र्ज़ जिस दिन भी अदा हो जाएगा
– डॉ आनन्द किशोर