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13 Mar 2017 · 1 min read

जब हक़ीक़त झूठ से टकरा गयी…

जब हक़ीक़त झूठ से टकरा गयी
सल्तनत तब झूठ की घबरा गयी।

बे-ख़बर थे वक़्त की जो मार से
ज़िन्दगी उनकी क़फ़स में आ गयी।

मुफ़लिसी को पालता हूँ आज कल
सादगी ही हाथ में पकड़ा गयी।

हौसला तब ख़ाक में मिलने लगा
तीरग़ी जब रोशनी को खा गयी।

बद ज़ुबानी कर रहे माँ बाप से
शाइरी यह देख कर शरमा गयी।

फ़लसफ़ा है दौरे’ हाज़िर का यही
आग पंकज की ग़ज़ल भड़का गयी।

पंकज शर्मा “परिंदा”

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