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14 Nov 2018 · 1 min read

जब तक दुःखी जगत की जननी

जब तक दुःखी जगत की जननी।
जग की किस्मत नहीं सुधरनी।।,,,1

हाहाकार मचा है जग में।
पापों का बंधन है पग में।
दूर तलक उम्मीदें धुंधली,
खून बना है पानी रग में।।

हालत जग की नहीं सँवरनी।जब तक दुःखी,,,,,,2

फैला मायाजाल धरम का।
लेकिन है अज्ञान परम का।
धर्मों को व्यापार बना कर,
तोड़ दिया है गर्व मरम का।।

हुआ धर्म का ताना छलनी।जब तक दुःखी,,,,,,3

बंटवारे के द्वन्द छिड़े हैं।
कभी बात, बेबात भिड़े हैं।
भूलें मातृ-प्रेम के आखर,
बस घृणा के पाठ पढ़े हैं।।

धुंध द्वेष की पल पल बढ़नी।जब तक दुःखी जगत की जननी।।

कवि, गीतकार
चन्द्रवीर सोलंकी “निर्भय”
आगरा
(मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित)

6 Likes · 25 Comments · 330 Views
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