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7 May 2021 · 1 min read

जब जब लगा मुझे वह भोला।

जब ख़ुद को रूपए मैं तौला।
वज़न नहीं कुछ कांटा बोला।
उसकी तरल निगाहें ऐसी।
जब देखा है तब कुछ डोला।
थाली वही भली लगती है।
खट्टा मीठा संग हो छोला।
तब तब बदमाशी कर गुजरा।
जब जब मुझे लगा वह भोला।
ज़हर भरा इक नाग वो निकला।
हमने समझा जिसे सपोलां।
“नज़र” थाह लग ही न पाई।
हमने उसको बहुत टटोला।
******
कुमारकलहंस, 07,05,2021।

11 Likes · 4 Comments · 295 Views
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