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8 Mar 2020 · 1 min read

जब कभी तुझ पर मेरी नज़र जाती है,

जब कभी तुझ पर मेरी नज़र जाती है,
कतरा-कतरा ज़िन्दगी मेरी संवर जाती है !!

शुक्र तेरा जो तूने मुझे जीना सिखा दिया,
भरम था मुझे की ज़िन्दगी अकेले गुज़र जाती है !!

ज़रूरी नहीं जिस्म का जिस्म से हो मिलन,
तुझे सोच भी लूँ तो हस्ती मेरी निखर जाती है !!

रेत के घरों सी है ये ज़िंदगी भी,
ज़रा सी ठोकर लगती है और बिख़र जाती है !!

जब भी लिखा है तेरे नाम को शेरों में,
ग़ज़ल कैसी भी हो अपने आप निखर जाती है !!

आज फिर वो शिकार हो गयी उन दरिंदो का,
वो बेटी जो चंद पैसे कमाने शहर जाती है !!

—अलताफ हुसैन

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