जन्माष्टमी के दोहे
काली घटा घनघौर थी,बरसी थी घनी बरसात
देवकी कोख पैदा हुए,मधुसुदन श्यामल गात
काल कोठरी कैद थे,खुल गए थे कारागार द्वार
टोकरी मे रख कृष्ण को,वसुदेव गए नन्द के द्वार
वसुदेव देवकी लाडला, पहुँचा यशोदा के पास
नन्द हलधर बलराम संग,क्रीड़ा कोतूहल वास
देवकी वसुदेव लाल था, पर रहा न उनके पास
नन्द यशोदा पालक बने,नन्द गाँव मे रहा वास
गोपियों संग रासलीला, यशोदा संग सच्चा प्रेम
सुदामा संग निभाई दोस्ती,रंक राजा में घौर प्रेम
लोक भलाई परमार्थ में, किए थे बहुत से काम
अहंकारी मामा कंस का,निज हाथों काम तमाम
बना सारथी अर्जुन का,दी युद्ध में अच्छी सीख
महाभारत के युद्ध में,गीता सार की जग सीख
भादो मास की रात को,आया था विष्णु अवतार
माखनचोर दिवस को,मनाते हैं जन्माष्टमी त्यौहार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत