जनाजा
जनाजा ..(हास्य कविता)
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अर्थी पर लेटा मैं
अपने जनाजे का
भरपूर आनंद ले रहा था
लोग आते ,
मुझे गौर से देखते
कुछ आंशू बहाते
कुछ धीरे से भुनभुनाते
कोई कहता अच्छा था
कोई… दिल का सच्चा था
एक ने कहा जो भी था
किन्तु बहुत पकाता था
मित्रों को कविता सुना
सुनकर बहुत सतता था
चलो अच्छा हुआ…मर गया
पीछे से एक बोला
यार लेकिन बेमौसम गया
माघ फागुन में जाता
हमे परेशानी न होती
हाथ सेंकते और जलाते
इसी बहाने एक दिन का
अलावा की लकड़ी तो बचाते
मनहूस कहा भादो में मर गया
बरसात का सारा मजा
किरकिरा कर गया।
घर होते चाय संग
पकौड़े खाते, टीवी देखते
बीबी संग रास रचाते
पीछे से एक बोला
तेरी परेशानी भी
कोई परेशानी है
मेरी परेशानी तेरे परेशानी
की नानी है
मुझे तो अपनी वाली के
घर के सम्मुख
बरसात में नहाना था
इसी बहाने बाडी दिखा दिखा
गर्लफ्रैंड को पटाना था
मुआ खुद तो मर गया
किन्तु हमें परेशान कर गया
केवल परेशान ही नहीं
परेशानियों का अंबार
खड़ा कर गया।
तभी तीसरे ने मुह खोला
और कड़क स्वर में बोला
अरे भाई बात ही करोगे
या जनाजे को कंधा भी लगाओगे
आखिर इस प्रक्रिया को
आगे कब बढाओगे
चलो अर्थी उठाओ
चार जना मिल कंधे तो लगाओ
जाने वाला चला गया
क्यो गया कब और कैसे गया
जान कर क्या फायदा
मरने का नाही कानून है
और ना ही कोई कायदा
चलो जो होना था
वो तो होगया
खुशी तो इस बात की है
एक भोज का बन्दोबस्त हो गया
इधर घर में भी
दुख का माहौल था
देखने वालों से ठसाठस
भरा बरामदे का हौल था
सबके सब ढाढस बधा रहे थे
मेरे घरवालों को
जगत की यही रीत समझा रहे थे
सब दूखी मगर चुप थे
किन्तु बीवी मेरी
फुट फुटकर रो रही थी
चेहरे को देख मेरे
अपना आपा खो रही थी
बोली… अपने तो गये
मेरे सर इतना सारा
जंजाल छोड़ गये
अब इन्हें कौन पालेगा
घर में जो इतने
बेरोजगार पड़े है
इन तमाम निखट्टूओ को
आखिर कौन सम्भालेगा।
जबतक थे मेरी हर इच्छा पुराते थे
जब भी जो कुछ मांगु
वहीं लाते थे
अब मेरी इच्छाओं को
बोलो कौन पुरायेगा
सुबह सबेरे चाय बनाकर
हमें बिस्तर से कौन जगायेगा।
सबकी बातो को सुन सुनकर
आत्मा मेरी परेशान हो गई
बोली अबे जगजा
मरने से नहीं कोई फायदा
तू तो पहले से ही मरा है
और कितना मरेगा
तू जो चला गया
इन निखट्टूओ का भुथरा
क्या तेरा बाप भरेगा
जल्दी से जग जा नहीं तो
तेरी बीवी सबकुछ बोल देती
तुम दोनों के आपसी भेद
सब के सब खोल देगी।।।।
……..
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”……..✍