छोड़ो नफरत और अदावट….
छोड़ो नफरत और अदावट।
हर चेहरे पर, दिपे खिलावट।
रची विधना ने रचना अद्भुत,
सहज बनावट, सघन बुनावट।
परख न पाएँ अपना-पराया,
बातों में यूँ, मिले न मिलावट।
मुख पर सबके चढ़ा मुखौटा,
मीठी बानी में, गरल घुलावट।
सज्जनता की पूछ न कोई,
भाती सबको, सिर्फ सजावट।
जीवन जटिल हुआ है इतना,
सहज प्रवाह में,आई रुकावट।
नियामत पाई खुदा की उसने,
वाणी से जिसकी, झरे हलावट।
छाप न छोड़ें, मन पर कोई,
चलती खबरें, फौरी-फटाफट।
सृजन की दो मुख्य कसौटी,
भाव-संगुफन, शिल्प-कसावट।
हुआ आज रोबोट-सा मानव,
नैतिक मूल्यों में, आई गिरावट।
रही न दुनिया जीने लायक,
होती देख सब, ऊब-झिलावट।
घाम विकट है छाँह माँगे मन,
ढूँढे से मिले न, कोई महावट।
लेखन तभी सफल हो ‘सीमा’
मर्म छुए जब, सहज लिखावट।
-© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
“चाहत चकोर की” से