छोड़ो जहर
है नशा
जीवन में
जहर
उजड़ जाते
परिवार अनेक
किया शिव ने
बचाने जगत
विष पान
बन गये वो
नीलकंठ
होते नहीं
सभी सर्प
समेटे अपने में
जहर
भय से ही
हो जाता है
इन्सान
परेशान
बोलो
जीवन में
बोल
अमृत तुल्य
बनों मत
विषधर
जीवन में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल