छुप नहीं पाते हैं अब गम क्या करें
छुप नहीं पाते हैं अब गम क्या करें
आँख ही हो जाती हैं नम क्या करें
वायदे तो करते हैं वो हमसे बड़े
पर न रहते उन पे कायम क्या करें
दीप आशा के जलाये अनगिनत
दूर पर होता नहीं तम क्या करें
दर्द ही जब जख्म की मेरे दवा
फिर लगा कर इस पे मरहम क्या करें
चाहते हैं दूसरे जाएं बदल
खुद को कहते हैं भला हम क्या करें
कर तो देते जान भी कुर्बान हम
बात में ही था नहीं दम क्या करें
हमसे मिलकर ‘अर्चना’ वो झूम कर
गाने लगते प्रीत सरगम क्या करें
29-12-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद