छतीसगढ़ी :: असल हमर चिन्हारी नइये ::सुशील यादव
हमर हाथ म रापा नइये, हमर हाथ कुदारी नइये
तोर ठप्पा का लगायेन,असल हमर चिन्हारी नइये
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इहि डहर ले आवत होही
नवा साल इहि रद्दा आय
हमला छुए बर माते हव
खेल हमर थू बद्दा आय
बैरी मन,जम के रिसाये,दे बर उनला गारी नइये
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अबड़ जबर सँसो के टुकनी
दिखत हवय कोन बोहइय्या ?
डर के मारे लुकाय फिरत
किजर-किंजर हांका परइय्या
कइसनो हमर पहा जाही,बचे जिनगी भारी नइये
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तुंहर पलंग ठाठ देखन
अपने खर्रा खाट देखन
सपना म बस अंजोर करेव
गंवई-राज, बाट देखन
कल के सुवाद का बतावन,खट्टा-भाजी अमारी नइये