Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Nov 2017 · 4 min read

छठ के २२ वर्ष

छठ के २२ वर्ष-एक अनुभव

सम्पूर्ण विश्व में छठ मेरी नज़रों में अकेली ऐसी पूजा है जिसमें डूबते सूरज की आराधना उतने ही लगन और हृदय से करते है जितने उगते सूरज की भी की जाती है।ये एक वैचारिक और सांकेतिक उद्घोषणा है सम्पूर्ण विश्व के लिए और इसका अनुसरण अपने निजी ज़िंदगी में गर किया जाय तो आपके सोंचने के मायने और माप दोनो बदल जाएँगे।

मेरा अपना अनुभव-
बचपन से माँ को छठी माई की पूजा अर्चना पूरे समर्पण के साथ करते देखा हूँ।हर साल माँ एक नया संकल्प ले लिया करती थी।मेरी आस्था शुरू से माँ में थी और माँ की पूर्ण आस्था छठी माई में।हम तीनो भाई बहन अपने अपने हिस्से का काम बड़े चाव और उत्साह से करते थे।धीरे धीरे मेरी आस्था दोनो माँ में बंट गयी।
माँ लगभग मौन ही रहती थी।बोलने से प्यास बढ़ जाती है ऐसा मैं सोंचता था।
वक़्त बीतता गया और माँ ने ढलती उम्र के साथ अंतिम संकल्प कर लिया ।आज भी वो ये पर्व मनाती है जितना उनका स्वास्थ्य सहयोग कर सके।

२२ वर्ष में हम लोगों का जो भी छोटा मुक़ाम था जैसा मेरी माँ ने सोंचा था कम और ज़्यादा हासिल हुआ ।
सब तरफ़ लगभग सुख और शांति है सब यही सोंचते माँ को २२साल के व्रत का मीठा फल मिला और मैं सोंचता हूँ मुझे मेरी माँ के पूरे जीवन के कठोर व्रत का फल मिला।ये सब चलता रहेगा पर इस पर्व में हमारे समाज ने अपनी आस्था दिन दूनी और रात चौगनी बढ़ा रखी है।बिगत दस सालों में इस पर्व का विस्तार उत्तर भारत से निकल लगभग पूरे भारत या कहे विश्व में हो गया है कम से कम जहाँ जहाँ उत्तर भारत के शूर वीर पहुँचे है।मेरी नज़रों में ये एक चेन रीऐक्शन जैसा प्रभाव प्रतीत होता है
कुछ विशेष गुण जो मैंने सीखे है इस महान पर्व से थोड़ा उसपे प्रकाश डालते है।
१)बचपन में पहली सीख मुझे मिली अनुशासन की जिसकी ज़रूरत क़दम क़दम पे है ।अगर आप छठ व्रत करते है तो बिना पूर्ण अनुशासन के ये आयोजन ये अनुष्ठान संभव ही नहीं है।
२)दूसरी सीख सारे परिवार का पूर्णतह एक जुट होना जिसके बिना ये पर्व संजीदगी से मनाना भी संभव ही नहीं है ।व्रत माँ करती थी पर पूरा परिवार नियमावली,नियम और संयम का व्रत करता था जैसे हमलोग माँ का पूरा फैला हुआ हिस्सा हों।
३)हर कष्ट में सुखी रहना -माँ के आभा मंडल पे कभी ऐसी शीकन नहीं दिखी जो इस कठोर व्रत से प्रभावित हो रही हो।वो उस कष्ट में भी सुखी थी भीतर अंतरात्मा तक।
४)योग और साधना से इसको मैं सीधा जोड़ता हूँ।साष्टांग पद यात्रा इस पर्व का एक प्रमुख हिस्सा है कई माँओ को घर से ही साष्टांग पद यात्रा करते देखा है और कई माताएँ घाट पे पहुँचने के बाद करती है ।वो भी व्रत के स्थिति में। ऐसी पूँजित ऊर्जा श्रोत कहाँ देखने को मिलती है लोग इस तप में माताओं को देवी का दर्जा यूँ ही नहीं दे देते है।। हम लोग भी माँ का साथ दिया करते थे और मुझे विशेष हिदायत थी माँ की ११ या २१ साष्टांग पग लेना ही है।जो मानसिक बदलाव योग और साधना कर आपमें आता है उसका प्रतिबिम्बित झलक मुझे छठ में साफ़ दिखता है।

५)मिल बाँट के खाना एक सामाजिक दायित्व-घाट पे पूजा के बाद हर परिवार वहाँ सबसे प्रसाद लेते है और सबको प्रसाद देते है।ये आदान प्रदान कितना सुखद हो सकता है ये वही समझ सकता है जिसने घाट जाकर इस पर्व को देखा है मनाया है।असली भारत वर्ष जिसके परिकल्पना मात्र से हम गौरवान्वित महसूस करते है उसका साक्षात दर्शन घाट पे जाकर ही किया जा सकता है।

६)स्वच्छता अभियान-असली स्वच्छता अभियान जिसके आगे आज के नेता गण की सुनियोजित अभियान भी फीकी लगे इस महान पारम्परिक पर्व में देखा जा सकता है।
हर परिवार अपने घर और घर के सामने वाले रास्ते को भी धोता है ऐसा सामूहिक अभियान या तो सावन के महीने में बम भोले की यात्रा में दिखता है या छठ के इस महान पर्व में।समाज के सभी वर्ग और समुदाय कम से कम रास्ता तो साफ़ कर ही देते है इसके साथ कई लोगों के दिल और मन भी साफ़ हो जाते है और फिर कटुता की कमी स्वाभाविक है

सिंदूर लगाना वो भी पूरे नाक के निचले छोर तक ये इस पर्व का अभिन्न अंग है और कई नयी युवतियों के लिए वाध्यता जो आम ज़िंदगी में परहेज़ करती है माँग में सिंदूर भरने में।ये शायद मौक़ा देता है कि साल भर का कोटा एक दिन में भर लो और कई युवतियाँ प्रफुल्लित और गौरवान्वित भी होती है शायद ये धारणा रही हो कि जिसकी जितनी लम्बी सिंदूर लगेगी उसकी इक्षाएँ अपेक्षाएँ उतनी ज़्यादा पूरी हो।
आजकल फ़ेस्बुक पे एक गम्भीर मुद्दा भी बना हुआ है और वाक़ई लोगों के विचार कॉमेंट में पढ़कर लगता है देश प्रगतिशील है विचारों के आदान प्रदान की कोई कमी नहीं है।

हाँ ये भी सच है पिछले दस सालों में जितना ये फैला है इसके मनाने के तरीक़े में जो पहले सादगी और मधुर गीत गाने की परम्परा थी उसकी जगह DJ और गाने में अकर्णप्रिय संगीत का मिश्रण ने ले लिया है।कुछ नासमझ इसकी मौलिकता के साथ भी छेड़छाड करते है जो इस पर्व के नियमावली से बाहर है।

पर मुझे गर्व है इस महान परम्परा पे जो अपना प्रभाव व्याप्त रख रही है और जिसका सरस्वती नदी की तरह विलुप्त हो जाने की सम्भावना बिलकुल नहीं है।संभवतह
ये मेरे व्यक्तिगत आकलन से ज़्यादा फलफूल रही है।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 322 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कट गई शाखें, कट गए पेड़
कट गई शाखें, कट गए पेड़
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
Maa pe likhne wale bhi hai
Maa pe likhne wale bhi hai
Ankita Patel
रिश्ते
रिश्ते
पूर्वार्थ
रोज गमों के प्याले पिलाने लगी ये जिंदगी लगता है अब गहरी नींद
रोज गमों के प्याले पिलाने लगी ये जिंदगी लगता है अब गहरी नींद
कृष्णकांत गुर्जर
"चाँद-तारे"
Dr. Kishan tandon kranti
आख़िरी मुलाकात !
आख़िरी मुलाकात !
The_dk_poetry
दो पाटन की चक्की
दो पाटन की चक्की
Harminder Kaur
■ आज की बात...
■ आज की बात...
*Author प्रणय प्रभात*
आँखों में ख्व़ाब होना , होता बुरा नहीं।।
आँखों में ख्व़ाब होना , होता बुरा नहीं।।
Godambari Negi
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
हमने भी मौहब्बत में इन्तेक़ाम देखें हैं ।
हमने भी मौहब्बत में इन्तेक़ाम देखें हैं ।
Phool gufran
जेसे दूसरों को खुशी बांटने से खुशी मिलती है
जेसे दूसरों को खुशी बांटने से खुशी मिलती है
shabina. Naaz
खंड 6
खंड 6
Rambali Mishra
मंजिल एक है
मंजिल एक है
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
हिन्दी माई
हिन्दी माई
Sadanand Kumar
बस नेक इंसान का नाम
बस नेक इंसान का नाम
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
हंसगति
हंसगति
डॉ.सीमा अग्रवाल
सच्ची बकरीद
सच्ची बकरीद
Satish Srijan
शे’र/ MUSAFIR BAITHA
शे’र/ MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
हसदेव बचाना है
हसदेव बचाना है
Jugesh Banjare
*बरगद (बाल कविता)*
*बरगद (बाल कविता)*
Ravi Prakash
Jeevan ka saar
Jeevan ka saar
Tushar Jagawat
" ज़ेल नईखे सरल "
Chunnu Lal Gupta
मेरी किस्मत को वो अच्छा मानता है
मेरी किस्मत को वो अच्छा मानता है
कवि दीपक बवेजा
सृजन
सृजन
Rekha Drolia
3164.*पूर्णिका*
3164.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
खुद को तलाशना और तराशना
खुद को तलाशना और तराशना
Manoj Mahato
💐प्रेम कौतुक-480💐
💐प्रेम कौतुक-480💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रण प्रतापी
रण प्रतापी
Lokesh Singh
" प्यार के रंग" (मुक्तक छंद काव्य)
Pushpraj Anant
Loading...