चेहरा आईना है
चेहरा आईना है राज न छिपाइए।
सत्य बोलके सभी का मन तू लुभाइए।।
काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़े है।
गाँठ बाँध लेना अगर बंधु कुछ पढ़े है।।
दिल जलाके किसी का ख़ुश न होना कभी।
प्रभु के घर देर है अँधेर न जाने सभी।।
पतंग जितनी उठती मन भी उठे उतना।
प्रेरणा से दिल पर असर होता है घना।।
सुप्तशक्तियों को जगा न सड़ाइए मनुज।
ज्ञान मिले लीजिए ना देख अग्रज अनुज।।
गुरु से बड़ा चेला हो तो कुछ बात बने।
शिष्य की शोहरत देखे गुरु-सीना तने।।
बाग ख़ुशी के लगा दुख का शमशान नहीं।
तू मानव है नासमझ-सा शैतान नहीं।।
प्रीतम प्रेम की खेती में मधुर फल लगें।
जो चखें उनके भाग्य हरपल रहते जगें।।
राधेयश्याम बंगालिया प्रीतम
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मात्रा..23-23