चुवानी समर
#विधा – #तांटक_छंद
#विषय – स्वच्छंद ? #सादर_समीक्षार्थ
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चुनावी समर
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महा समर झूठे वादो का, नेता रंग जमायेंगे।
जीते तो घपले घोटाले, कर के हमें दिखायेंगे।।
नागनाथ भी साँपनाथ भी, जमें हुये मैदानो में।
इनको भाग्य विधाता मानें, जंग दिखे नादानों में।।
पाँच वर्ष थे चाँद दूज का, हाथ जोड़कर आये हैं।
मक्कारी मिश्रित बातों से, जन जन में वो छाये हैं।।
मत पाने की खातिर हमको, नाना विध भरमायेंगे।
महा समर झूठे वादों का, नेता रंग जमायेंगे।।
छलिया हैं ये घात लगा कर, हमको छलने आये है।
खड़ी मूंग मिथ्या वादों की, सीने दलने आये है।।
धनबल का उपयोग करेंगे, नाना विध भरमायेंगे।
एक बार जो जीत गये तो, चारा भी खाजायेंगे।।
शातिर है ये फन मे अपने, आज दिखाकर जायेंगे।
महा समर झूठे वादों का, नेता रंग जमायेंगे।।
कथनी करनी मिले कभी ना,फसल खड़ी सैतानो की।
करनी से लगते ये अपने , वंशज हैं हैवानों की।।
कथनी के ये महा धनी हैं, शर्म नहीं इनको आती।
उल्टे सीधे कार्य करेंगे, राष्ट्र मिले चाहे माटी।।
गिरगिट जैसी फिदरत इनकी, रंग बदलते जायेंगे।
महा समर झूठे वादों का, नेता रंग जमायेंगे।।
कठिन राह पर राष्ट्र खड़ा है, हम ही पार लगायेंगे।
ऐसे ऐसे जुमले लेकर, नेताजी अब आयेंगे।।
जात धर्म की बात करेंगे, सबको खूब लड़ायेंगे।
मंदिर मस्जिद वर्ग भेद पर, जन जन को भड़कायेंगे।।
बातों की रोटी खते ये, राष्ट्र तलक खा जायेगे।
महा समर जूठे वादों का, नेता रंग जमायेंगे।।
****** स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार