चुप थे वो, बात दबानी शायद
चुप थे वो, बात दबानी शायद
या कसम कोई निभानी शायद
देते आवाज रहे पीछे से
देनी थी कोई निशानी शायद
अलविदा तो कहा उसने हँसकर
था मगर आंखों में पानी शायद
भाया पढ़ना न उसे आंखों से
सुनना चाहा था जुबानी शायद
लैला मजनूँ से न प्रेमी मिलते
अब है वो प्यार कहानी शायद
अर्चना’ भीगी हुई है पलकें
याद आई है पुरानी शायद
डॉ अर्चना गुप्ता