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24 Sep 2021 · 2 min read

किशन कारीगर के चुनिंदा शेर

मज़हब कौम की ज़द्दो-ज़ेहद मे ना कुछ रखा है?
इंसानियत के गले मिल, वहीं ज़न्नत सा दिखता है.
©किशन कारीगर

कभी उसके अदबो ईबादत का भी एहतराम तो कर.
तुझे क्या पता? वो अपने संग तेरी मक़बूलियत की भी दुआ माँगता.
©किशन कारीगर

खुशियाँ न बिकती कहीं, ना खरीद सकते.
एे बेजूबां दिल तू क्या समझे अपनापन?

तुझसे खुमारियत ही मुकरर,
तू ना कभी अपनेपन की महक से ज़िते?
©किशन कारीगर

हर कोई अपना ही फायदा ढूँढ़ता
बेबस लाचार यूँ लूटता रहता?

अपने फायदे के कायदे मे सब खामोश क्यूँ?
कौन भला बेवस के साथ होता?
©किशन कारीगर

अपने ही रस्ते चल परा कारीगर यूँ अकेले,
कई अपनी खुदगर्ज़ि मे मेरे संग ना चले?

फिर भी अपने ही दम किशन,
और दुर तलक चलने की जिद्द तो थी.
©किशन कारीगर

ये न सोच तू की?
बगैर तेरे चल नहीं पाऊँगा?

छलावे कर रोकोगे जितना,
उतनी ही दूर तलक चलकर जाऊँगा.
©किशन कारीगर

कई खुदगर्ज़ भी एसे एसे की?
अपने बुढ़े माँ बाप की हीफाज़त तक भूले?

क्यूँ भूल जाते हो की वो कभी, आज भी ताउम्र,
तुम्हारी ख़ुशीयों की खातिर अपना सब कुछ भूले?
@शायर- किशन कारीगर

मौत आयेगी ही, दफन भी हो जाऊँगा
कुछ पल और तो ज़ी लेने दे मेरे हमदर्द

इतनी ज़ल्दी भी किसलिये तुझे? की मै ना अब?
सांसे थम गयी, फिर भी दे शुकुने संग
©किशन कारीगर

ईद में चाँद सी खिलखिलाहट , अपने पराये सबको दावत.
हर गली-मुहल्ले गुले-गुलज़ार हो.

पैगाम ए दोस्ती, आ गले मिल जा,
आज “किशन ” के घर तेरा ईफतार हो.
शायर©किशन कारीगर

Language: Hindi
Tag: शेर
2 Likes · 491 Views
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