चुनाव का मौसम है आया ! ( हास्य-व्यंग्य कविता )
चुनाव का मौसम है आया ,
शरारत करने का मन ललचाया ,
नेताजी कि कुर्सी का। …
आगे कुर्सी ,पीछे कुर्सी ,
चारों ओर दिखे कुर्सी ही कुर्सी ,
देखो तमाशा कुर्सी का। …….
नेता जी जब सोने जाएँ ,
करवटों में रात गुज़र जाये,
नींद भी आने ना दे नशा कुर्सी का। ……
गर आ भी जाये भूल से नींद ,
तो भी रहती है यह उम्मीद ,
काश ! सपना आ जाये कुर्सी का। ……
५ साल तो अकड़ के में घूमें ,
ऐशो-आराम कि मस्ती में झूमें ,
अब तलवे चटवाए लालच कुर्सी का। …….
बैठी मनमोहिनी मंच पर मुस्काये ,
चाहे नेता परस्पर लड़-मर जाये ,
मगर ज़ालिम को तरस ना आये ,
यही तो अनोखा style है कुर्सी का। …।
आखिर बेचारी कुर्सी भी क्या करे ?
किसको छोड़े ,किसका वरण करे ,
आशिक़ों के झुंड में फंसा है दिल कुर्सी का। ….