चुनावी बेला ( व्यंग )
इस महा चुनाव की बेला में
कुछ महाभयानक भूत प्रेत
सज धज के निकले हैं सुंदर
अति महाभयंकर रूप फेंक
मासूम बना रक्तिम चेहरे
मल रहे क्रीम कातिल अनेक
इनके मेकअप को देख देख
ठग सठ खल चालू भी अचेत
दिग्भ्रमित काल गद बेला में
कई बने शिखंडी धनुष फेंक
कई कर्ण खड़े हैं अटल यहां
मित्रता का अंतिम धर्म चेत
कई महारथी कई स्वार्थरथी
दल बदल दिए आरंभ देख
कुछ बदलेंगे अपना कुंनबा
नयी हार जीत का रंग देख
चहुँओर बहेलिए निकल पड़े
करने को लोकतंत्र आखेट
कुछ जाति धर्म का ले धागा
बुन रहे जाल जंजाल देख
कुछ चारक भांट मीडिया जन
लेकर साधन सुविधा अनेक
ढोलक डुग-डुगिया बजा रहे
स्वारथ का अपनी राग लपेट
कोई हास्य कवि कोई शायर हैं
बिक रहा व्यंग प्रपंच लेख
कोई कहता है पागल विकास
रो रहा देश यह छद्म देख
योगी योगेंद्र