चिकित्सा व्यवसाय एक उत्कृष्ट उदाहरण
चिकित्सा व्यवसाय एक उत्कृष्ट उदाहरण।
मित्रों, मै स्व चिंतन के द्वारा स्व अनुभव से इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं ,कि, चिकित्सा कार्य एवं चिकित्सक होना, मनुष्य के जीवन का उत्कृष्ट तम अनुभव है ,एहसास है। इसे मैं आध्यात्म के द्वारा राष्ट्रपिता गांधी जी के चिंतन से प्रमाणित करने की कोशिश करता हूं ,जो कि एक सार्थक प्रयास है ।उदाहरण के लिए मैं गांधी जी के भजन माला से कुछ पंक्तियां उद्धृत करता हूं। और, उसे चिकित्सक परिवार के जीवन की कसौटी पर कसताहूं।
वैष्णव जन ते तेमिय कहिएज पीर पराई जाने रे ।
पर दुखे उपकार करें कोई,
मन अभिमान ना आवे रे।
उपरोक्त 4 पंक्तियों में जीवन का सार है , चिकित्सा परिवार के समस्त सदस्यों की मूल भावना में यह रचा बसा है, कि ,वह दूसरों की पीड़ा को पहचाने और इसीलिये ,उन्हें अच्छे शिक्षित परिवार का सदस्य कहा गया है। उनकी पीड़ा को न केवल वे अनुभव करते हैँ , बल्कि ,दूर करने का प्रयास भी करते हैं। इस प्रयास में न केवल वे मरीज ,दीन दुखियों, पर उपकार करते हैं, बल्कि ,इस कृत्य से उन्हें अनूठा ईश्वरीय, सुखद ,आशीर्वाद मिलता है ।और वे समस्त दुखों की जड़, अहंकार का परित्याग करते हैं। उन्हें अच्छे सुसंस्कृत सम्मानित नागरिक की तरह जाना जाता है। यह हमारी चिकित्सा संवर्ग की पहचान है ।अहंकार विहीन सम्मानित जीवन जीने की कला हमारे व्यवसाय को उत्कृष्ट बनाती है ।उपरोक्त तथ्यों को मैं रामायण की पंक्तियों द्वारा भी प्रमाणित करता हूं ।आप सबके समक्ष, यह साफ हो जाएगा कि, हमारा जीवन गरिमा मय ,है सार्थक है। हम भारतवासी हैं और भारत देशवासियों की सेवा करना अपना कर्तव्य समझते हैं ।
परहित सरिस धर्म नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।
अर्थात दूसरों का हित करने से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। इसलिए, दूसरों .के हित की सोचो, अपने हित की ,स्वार्थी और आत्म केंद्रित लोग ही सोचा करते हैं। जिसे मानसिक चिकित्सा में स्वार्थी कहा जाता है, यह भी एक मानस रोग है, दूसरों की पीड़ा को बढ़ाने वाला हर कृत्य अधम है। निकृष्ट है ।दूसरों की पीड़ा तो चिकित्सा कर्मी ही दूर करते हैं। अतः उनका प्रयास श्लाघनीय है। वंदनीय है ।अहंकार रहित है। निस्वार्थ है।हम सब श्वेत वस्त्र धारी हैं इस पर कुछ सरस कुछ नीरस व कुछ दुखद रंगों के छींटे नित्य प्रति दिन पड़ते रहते हैं । परंतु हमें इन श्वेत वस्त्रों की मूल भावनाओं को जीवित रखना होगा। इन छीटोंको प्रति दिन साफ करना होगा।अपने आंतरिक एवं बाह्य स्वच्छता को बनाए रखने के लिए स्वयं को प्रतिदिन साफ रखना होगा। तभी हमारी एकता, अखंडता, मनोबल ,व,आकर्षण बना रह सकेगा ।हमारे कार्यों से इस संघ की गुणवत्ता, दक्षता व सौंदर्य परिलक्षित होता रहेगा। हम अद्वितीय हैं ।हम अप्रतिम रहेंगे।विनम्रता सादगी ,स्वच्छता ,दक्षता व परहित हमारे स्वास्थ्य का मूल मंत्र है ,यह हमारे चिकित्सा परिवार की जान है, पहचान है। मित्रों ,स्वार्थवश जनता जनार्दन यह कहने से भी नहीं चूकते कि चिकित्सक भगवान का रूप होते हैं। मित्रों पुराणों में भगवान अश्विनी कुमारों का जिक्र आया है उनकी कहीं पूजा आराधना होती देखी है आपने ? मित्रों कलयुग में रामचरितमानस जैसी ग्रंथ की रचना हुई। महाकवि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में भी एक वैद्य का विवरण दिया है ,जिसका वर्णन सुषेण वैध के रूप में लंका कांड में आया है, जिन्होंने लक्ष्मण की प्राण रक्षा की थी ।विवरण है की हनुमान जी महाराज सुषेण वैद्य को घर समेतयुद्ध स्थल पर उठा लाए थे ।आज वर्तमान में भी चिकित्सकों के लिए ग्रामीण जनता इस घटना को जब याद करती है ,तब, चिकित्सकों पर जुमला कसती है कि अरे डॉक्टर साहब ,देख यो कसत नाहीं, घर से उठा लाइव।
मित्रों उक्त सुषेण वैद्य ने अपने प्राणों को संकट में डाल कर लक्ष्मण का श्रेष्ठतम उपचार किया था। रावण ने अपनी कृपाण से मार डालने की धमकी दी थी। किंतु स्वार्थ वश राक्षसों के उपचार के हेतु उसे छोड़ गया ।सुषेण वैद्य ने कहा मेरा कार्य उपचार करना है व्यक्ति मेरा मित्र हो या शत्रु उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या सुषेण वैद्य को जनता भगवान तुल्य मानती है? अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि
स्वारथ लागि करे सब प्रीति ।स्वार्थ साधने के लिए लोगकुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
लेखक डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव