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14 Oct 2016 · 1 min read

“चाहतें”

“चाहतें”
–राजा सिंह
प्यार करने को ,
बार-बार जाती है चाहते .
अनुनय,विनय और अनुरोध
करती है,मगर,
फिर भी निगाहें करम
नहीं होती है चाहते .

भगवान, खुदा, गॉड और
गुरु से ,
दुवांये,मिन्नतें,फरियादें की
असर कहाँ होता है,
हिकारत की नजर से
दो चार होंती है,चाहतेn.

तारीफ और तारीफों के पुल
बांधते जाते है,हम
मुस्कराती तिरछी नज़र बरसी ,
और धुल धुसरती ,
होती है चाहतें .

उनके प्यार के काबिल बने,
यह सोंचकर बदली ,
अपनी शख्सियत –
इस बात पर भी रुसवां हुई
उनकी ख्वाहिशें,अपनी चाहतें .

बददुआ देता है मन
उनकी सितमगिरी पर,
अपनी नाकामयाबी पर,
उनको कोई आंच, न आयें
ये चाहती है,चाहतें.
– राजा सिंह

Language: Hindi
271 Views
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