चाय और हम तुम
चाय और हम तुम,दोनों गुमसुम,
सोचते रहे पुरानी बातें , वो मुलाकातें,
हर बार थोड़ा आगे बढ़ने के लिए,
मिलते रहते थे थोड़ा थोड़ा,
बदला समय का फेर,
अब होने लगी थोड़ी थोड़ी देर,
झूठे बहानों और तकरारों का ढेर,
घुटन ने घोंटा दोनों का प्यार,
अलग हुए दोनों कर सांझे विचार,
आज अचानक इक मोड़ पर मिले
यूँ अचानक सामने देख इक दूजे को,फिर हिले,
दो बुद्धिजीवी चाय के कप पर एक बार फिर मिले……..