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14 Jul 2021 · 1 min read

“चापलूस”

“चापलूस”
*********

इसकी पूछो मत, कोई हाल;
ये मनुष्य होता, बड़ा कमाल।

इसका खास होता नही,नाम;
बस होता वह थोड़ा बदनाम।

काम करता, जिसके खातिर;
वो भी होता, बड़ा ही शातिर।

इसे ही, वो सदा आगे करता;
यही,उसके लिए अब लड़ता।

पहचानना , इसे बहुत जरूरी;
पहचान इसकी है, जी-हजूरी।

नजराना से , ये खुश हो जाता;
मालिक का फेंका सब उठाता।

रहता , कुर्सी व पॉवर के पीछे,
इसे , धनी या ठेकेदार ही सींचे।

बहुत होता, ये सदा मिलनसार;
किंतु होता ये, एक बड़ा गद्दार।

लालच कूट-कूट कर भरा होता;
अपनों के विरुद्ध ये खड़ा होता।

सबसे इसकी दोस्ती होती मगर,
किसी का दोस्त नहीं जरा होता।

बेईमान भी होता ये , इस कदर;
अपनों का ही कर दे कभी मडर।

इस प्राणी को रखिए सदा ही दूर,
गलती करने को ये , करे मजबूर।

खुद नौ के नब्बे भी, खर्च करा दे;
आपके सब, दुख-दर्द को बढ़ा दे।

क्षमता होती इसमें, बहुत अपार;
मिले ये हर ऑफिस , हर बाजार।

भरता नहीं कभी भी, इसका पेट;
मिलता, सबसे ज्यादा अपने देश।

°°°°°°°°°°°°°°°®°°°°°°°°°°°°°°

स्वरचित सह मौलिक
….✍️पंकज “कर्ण”
………. कटिहार।।

Language: Hindi
7 Likes · 2454 Views
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