चाँद
चाँद रात के आंगन में उतरा है
कोई कह दो जाके उसे
हम मातम मना रहे हैं।
बारुद के ढ़ेरों से
चिथड़े उठा रहे हैं
सालों पहले बिखेरे थे किसी ने
हम दामन में उठा रहे हैं
चाँद से कह दो हम मातम मना रहे हैं
***
…सिद्धार्थ…
चाँद रात के आंगन में उतरा है
कोई कह दो जाके उसे
हम मातम मना रहे हैं।
बारुद के ढ़ेरों से
चिथड़े उठा रहे हैं
सालों पहले बिखेरे थे किसी ने
हम दामन में उठा रहे हैं
चाँद से कह दो हम मातम मना रहे हैं
***
…सिद्धार्थ…