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8 Nov 2017 · 1 min read

चाँदनी “मासूम” झुलसी जा रही है दोपहर में

यूं धुआँ छाया नज़र में
है सुकूं बाहर न घर में

गुमशुदा है ज़िंदगी यूं
चिट्ठियाँ ज्यों डाकघर में

रंग चेहरों का उड़ा है
खून है किसके जिगर में

आदमी भयभीत सा है
जी रहा है जैसे डर में

मत इसे बदनाम कीजे
है शराफत जानवर में

एक ही चर्चा है हर सूं
क्या गली , घर क्या नगर में

चाँदनी “मासूम “झुलसी
जा रही है दोपहर में

मोनिका मासूम

1 Like · 322 Views
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