चल रही जिंदगी
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एक गीतिका
मात्रा भार-२० ,मात्रिक छंद(सम मांत्रिक)
२१२ २१२ २१२ २१२
चल रही ज़िंदगी ढल रही ज़िंदगी।
आज अपनी डगर बढ़ रही ज़िंदगी ।।(१)
हमसफ़र तो मिले,छूटते ही गये,
अब कफ़न बांधकर कट रही ज़िंदगी ।।(२)
चल रहा आदमी बढ़ रहा आदमी,
पर न आगे ज़रा बढ़ रही ज़िंदगी ।।(३)
जल रहा आदमी एक ही आग में,
एक ख़ाली सिला बन रही ज़िंदगी ।।(४)
एक उलझन महज़ सामने बन खड़ी,
अब यकायक हमें छल रही ज़िंदगी ।।(५)
?अटल मुरादाबादी✍️
नौएडा