Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Jan 2017 · 4 min read

चल पड़ी जिस तरफ जिन्दगी

वह पूरब की अंधेरी गलियों से होता हुआ, हमारे पश्चिमी मोहल्ले की गली मे उसने प्रवेश किया,
जो बिजली की रोशनी से जगमगा रही थी ।
अचानक रोशनी युक्त गली के चौराहे पर लड़खड़ाया ।
गली के कुत्ते सावधान हो गए और उन्होंने भौंकने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया, लेकिन वही
जाना पहचाना चेहरा सामने था, सोंचा-ये तो वही है, जो अक्सर इस गली के चौराहे पर आकर लड़खड़ाता है । कुत्तों ने उस मदमस्त युवक पर स्नेह प्रकट किया और अपनी दुम हिलाते हुये कुछ दूरी तक उसके पीछे-पीछे चले ।
आज वह फिर घर में देर-रात पहुँचा था,रोज की तरह उसकी बूढ़ी माँ जो कमजोर और बीमार थी,बेटे का इन्तजार करते-करते सो चुकी थी ।
माँ को बिना जगाये ही, वह रसोईं में जा पहुँचा ।
रसोईं में खाने के लिए आज कुछ भी नहीं था । वह रसोईं से बाहर आया और आँगन में पड़ी हुई चारपाई पर लेटकर सो गया।
सुबह के नौ बज चुके थे, लेकिन साहबजादे अभी भी सपनों के संसार में खोये हुए सो रहे थे, जब सूर्य की धूप में थोड़ी सी तपन हुई, तब ‘सूरज’ ने आँखे खोलीं । सिर पर बोझ सा महसूस हो रहा था, माँ से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,फिर कुछ सोंचा और माँ की चारपाई के पास जाकर बैठा, जो एक टूटे हुये छप्पर के नीचे पड़ी थी । सूरज ने माँ के चरणों को स्पर्श किया, शरीर तेज बुखार से तप रहा था ।
माँ ने आँखें खोलीं
इससे पहले कि माँ कुछ कहती, सूरज पहले ही बोल पड़ा-माँ मुझे माफ कर दो, कल फिर दोस्तों ने जिद कर दी तो थोड़ी सी….
कहते-कहते सूरज रूक गया, उसने माँ की ओर देखा, माँ की आँखों में अश्रुओं की घटा छायी हुई थी,सूरज के चेहरे पर शर्म की लकीर छाने लगी ।
लेकिन वह शर्म की लकीर माँ के ममतामयी अश्रुओं से कहीं कम थी ।
एक समय वह था, कि सूरज माँ की गोद में सिर रखकर सोया करता था, माँ ने उसे बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था ।
मोहल्ले के लोग भी उसे बहुत प्यार करते थे, लेकिन अब उसकी बुरी संगतों की वजह से सब लोगों ने उसे दिल से नकार दिया था ।
वैसे माँ यह सब देखकर चुप रहा करती थी, क्या करती बेचारी बूढ़ी थी, तीन साल पहले उसके पति का देहांत हो चुका था, उधर पति के साथ छोड़ने का गम
और बेटे की करतूतों ने उसके शरीर को जर्जर कर दिया था ।
बूढ़ी माँ दूसरों के घरों में काम करती, और खाने के लिये ले आती, जो थोड़े-बहुत पैसे मिलते
वे घर के काम-काजों में खर्च हो जाते, दो-तीन दिनों से वो भी नहीं हो पा रहा था, न ही वह काम पर जा पायी, और न ही घर पर खाने का कुछ प्रबन्ध हो पाया, क्योंकि उसका शरीर अब और भी बोझ उठाने के लिये सक्षम नहीं था ।
उसका ‘एकमात्र सहारा’ ‘आँखों का तारा’ सूरज ही था,वो भी अपना दायित्व नहीं समझ रहा था ।
सूरज के माँ और बापू ने उसका नाम सूरज इसलिए रखा था, कि वह परिवार को एक नयी दिशा प्रदान करे ।
अपने मेहनत रूपी प्रकाश से अंधकार रूपी गरीबी को अपने परिवार से भगाये, परन्तु सब विफल हो गया,वह केवल दिन के उजाले में बिजली के बल्बों की भाँति टिमटिमा रहा था, और परिवार में और भी गरीबी के बीज वो रहा था ।
लेकिन आज बूढ़ी माँ के हृदय में सोया हुआ ज्वालामुखी जाग गया और वह अपने ममतामयी अश्रुओं के साथ शब्दों की वर्षा करने लगीं-
सूरज क्या तुम्हें अपने पथ का ज्ञान नही है ?
क्या तुम्हारा कोई कर्त्तव्य मेरे लिये, और इस घर के लिये नहीं बनता ?
तुम क्या सोंचते हो, जिस जिन्दगी के पथ पर तुम चल रहे हो, क्या ये पथ तुम्हें सुख और वैभव की ओर ले जायेगा ?
कदापि नहीं, इससे तुम अपने आप को समूल नष्ट कर डालोगे ।
जब मनुष्य अपने कर्त्तव्य-पथ से डिग जाता है,तो उसका मार्गदर्शन गुरु अथवा माता-पिता करते हैं।
इसलिए मैं तुम्हारे कर्म-पथ को दिखाने की चेष्टा कर रहीं हूँ ।
कहते-कहते माँ का गला रुँध गया और एक सुष्मित शब्द के साथ वो एक ‘चिर-निद्रा’में लीन हो गयी । सूरज के मुख से एक दुखित पुकार निकली, फिर सन्नाटा छा गया ।
सूरज की माँ उसे छोंड़कर अपने पति-पथ पर जा चुकी थी ।
दोपहर का समय हो रहा था, मोहल्ले के लोग सूरज के घर के पास जमा हो रहे थे ।
पड़ोसियों ने मिलकर उस बूढ़ी माँ की अन्तिम विदा की तैयारी की।
दिन के तीसरे पहर में सूरज ने अपनी माँ का अन्तिम संस्कार किया ।
मोहल्ले के सभी लोग वापस घर लौट आये थे, परन्तु सूरज अभी भी माँ की जलती चिता को देख
रहा था ।
संध्या का समय हो गया था । आज सूरज बहुत दिनों के बाद घर पर जल्दी पहुँचा, उसने दीपक जलाया और माँ की चारपाई के पास जा बैठा, वह एकटक दीपक की जलती लौ को देख रहा था ।
माँ के शब्द उसके मस्तिष्क में बिजली की भाँति कौंध रहे थे ।
न जाने कब आँख लग गयी, और वो सो गया ।
आज सूरज प्रातःकाल ही जाग गया ।
आज सूरज की एक नयी सुबह थी, सूरज को एक नयी दिशा मिल चुकी थी,और वो उस पर चलने के लिए तत्पर था ।
उसकी जिन्दगी ने एक नया मोड़ ले लिया था ।।

-आनन्द कुमार

Language: Hindi
2 Likes · 555 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण संरक्षण
Pratibha Pandey
महोब्बत करो तो सावले रंग से करना गुरु
महोब्बत करो तो सावले रंग से करना गुरु
शेखर सिंह
*भरोसा तुम ही पर मालिक, तुम्हारे ही सहारे हों (मुक्तक)*
*भरोसा तुम ही पर मालिक, तुम्हारे ही सहारे हों (मुक्तक)*
Ravi Prakash
मतदान करो
मतदान करो
TARAN VERMA
पुस्तक समीक्षा -राना लिधौरी गौरव ग्रंथ
पुस्तक समीक्षा -राना लिधौरी गौरव ग्रंथ
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
खरी - खरी
खरी - खरी
Mamta Singh Devaa
मेरे दिल के खूं से, तुमने मांग सजाई है
मेरे दिल के खूं से, तुमने मांग सजाई है
gurudeenverma198
हरि हृदय को हरा करें,
हरि हृदय को हरा करें,
sushil sarna
"जब मानव कवि बन जाता हैं "
Slok maurya "umang"
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
वैज्ञानिक युग और धर्म का बोलबाला/ आनंद प्रवीण
वैज्ञानिक युग और धर्म का बोलबाला/ आनंद प्रवीण
आनंद प्रवीण
होली के दिन
होली के दिन
Ghanshyam Poddar
"संवाद"
Dr. Kishan tandon kranti
निराकार परब्रह्म
निराकार परब्रह्म
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
" फ़साने हमारे "
Aarti sirsat
******** प्रेरणा-गीत *******
******** प्रेरणा-गीत *******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
इनको साधे सब सधें, न्यारे इनके  ठाट।
इनको साधे सब सधें, न्यारे इनके ठाट।
दुष्यन्त 'बाबा'
Rap song (3)
Rap song (3)
Nishant prakhar
अनंत की ओर _ 1 of 25
अनंत की ओर _ 1 of 25
Kshma Urmila
2636.पूर्णिका
2636.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
दो घूंट
दो घूंट
संजय कुमार संजू
मन-गगन!
मन-गगन!
Priya princess panwar
💐प्रेम कौतुक-173💐
💐प्रेम कौतुक-173💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
उत्कृष्टता
उत्कृष्टता
Paras Nath Jha
बुलेटप्रूफ गाड़ी
बुलेटप्रूफ गाड़ी
Shivkumar Bilagrami
Kash hum marj ki dava ban sakte,
Kash hum marj ki dava ban sakte,
Sakshi Tripathi
शिकवा नहीं मुझे किसी से
शिकवा नहीं मुझे किसी से
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
बिल्ली
बिल्ली
SHAMA PARVEEN
31 जुलाई और दो सितारे (प्रेमचन्द, रफ़ी पर विशेष)
31 जुलाई और दो सितारे (प्रेमचन्द, रफ़ी पर विशेष)
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"थामता है मिरी उंगली मेरा माज़ी जब भी।
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...