चल -चल…. रे साथी चल-चल..
चल-चल…रे साथी चल -चल…2
तज के सारे इन भ्रमों…2, धम्म शरण चल ।
चारों तरफ़ है घोर अशान्ति,
मिली है उर न मिलेगी तुझको मुक्ति।
अन्यायों में अब तक जिया…2
न्याय की राह चल ।।
चल -चल….रे साथी….
कटेगी न तेरे बच्चों की कटी जैसे तेरी,
चली न है तेरे पुरुखों की जो आज चलेगी तेरी ।
जीवन जीने की शैली को प्यारे,
राह धम्म की है रे बंदे , उस राह पर चल
चल-चल …..रे साथी चल -चल….
किये हैं ज़माने में, पाप घनेरे…
अन्त समय आया जब ना कोई पास तेरे।
शौक़-शान तेरी न रहे क़ायम चमन में,
इस मोह-माया को छोड़, संघ शरण चल।।
चल-चल……रे साथी चल-चल…..
तुझे सुखः देने को बहुतों ने गँवाया है,
कर बलिदान जीवन कुछ भी पाया है ।
याद अपने महापुरुषों को …2
बार-बार करता चल।।
चल-चल……रे साथी चल-चल…
चल-चल …..रे साथी चल-चल….
तज के सारे इन भ्रमों को…धम्म शरण चल….2
आर एस बौद्ध”आघात”
8475001921