चल किस्सागोई हम करते हैं…
इस दहर में कोई किसी का उस्ताद नहीं
शागिर्द बने कोई मेरा
मुझ में वो उम्दा बात नहीं
चल आ संग संग हम चलते हैं
कुछ मै लिखूं, कुछ तू भी लिखे,
कुछ औरों के किस्से पे हंसते है
जिंदगी तो है छोटी सी
खुशियां और भी छोटी छोटी सी
इतने में क्या औरों से हम जलते हैं
चल हम मिल के किस्सा गोई करते हैं…
पड़ोस की सुंदर बाला को हम मिल के
नयनों से तकते है,
कुछ उसके सुंदरता पे भी लिखते हैं
वो जो खिड़की के पीछे एक छोड़ा है जो …
छुप छूप के देखा करता है
नयनों से ही सब कुछ कहता है
जुबां खोलने से जो डरता है
चल उसको अंगुली करते हैं
हम किस्सागोई करते हैं
वो अम्मा, वो दादी, वो पड़ोस की सुंदर सी भाभी
सब से हंस कर मिलते हैं
सब में सुगन्ध सा खिलते है
चल किस्सागोई हम करते हैं…
~ पुर्दिल सिद्धार्थ