चलो जलाएं दिये ,शाम होने को है
राह मे चलते हुए,मिल जाते हैं कितने ही राहगीर,
और बिछुड जाते हैं,दो राहों पर,
जो चले थे ,साथ साथ हम तब,
पर यह देखना भी हमारा ही काम है,कौन साथ है अब ,पाने को अपनी मजिंल जो साथ चले थे तब,
यूँ तो राह में चलते हुए,रही थी शिकायतें और शिकवे भी,किन्तु बिछडते हुए,हम गमजदा भी , हुए,सब कुछ भुला कर।
क्योंकि, यह मानकर कि ना जाने अब हो सकेगी मुलाकात कभी,और ना जाने कब टुट जाये,
इस जिन्दगी की डोर।
तो आओ चलो जलाएं दिये,प्यार के,
कि अब शाम होने को है।