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11 Mar 2017 · 1 min read

“चली बयार फाग की देखो”

?चली बयार फाग की देखो?
चली बयार फाग की देखो, मंद -मंद मुस्काती।
सरस भरी कलियों का दामन, विहँस -विहँस सरसाती ।।

मोहनि मूरति मोह बढ़ाती,देख पिया मदमाती।
चंचल चपल सलौनी चितवन, तन में अगन लगाती।
लाल कपोल नयन कजरारे, अधर पंखुड़ी भाती।
तँग अँगिया से छाती झाँके, नज़र वहीं रुक जाती।।

देख मध्य कटि सुंदर नाभी, घटा केश इठलाती।
चंचल चितवन नार देख के, सुधबुध है बिसराती।
नख से शिख तक द्युती दामिनी, चपल दमक दिखलाती।।
खिली अधखिली कुसुमित लतिका, तरु से जा लिपटाती।

तंग कसाव भुजा आलिंगन, अंतरतम महकाती।।
सान्निध्य सरस, सुंदर पाकर ,मधुर हास छटकाती।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका– “साहित्य धरोहर”
महमूरगंज ,वाराणसी।
वॉट्सएप्प नं.– 9839664017

Language: Hindi
384 Views
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