युद्ध से नही प्रेम से जीतो
तलवारों से,खंजरों से
तोपों से, बंदूकों से
जंग फ़तह की है ,बुजदिलों ने
परछाइयों में छिपकर
गर इंसान हो तो जीत लो दुनिया
सीने में दिल रखकर ।
खंजरों में धार पत्थरों से आती है
दिलों में नफ़रत की आग
बुज़दिली से आती है
जब खून पीने की आदत
लग जाए , तो
ज़ख्म देखकर आँखों में
नमी नही आती है ।
जो सामने पड़ा है
वो भी इंसान है
धड़कता दिल था सीने में उसके
और आँखों में सपनें
मिला क्या कत्ल कर उसका
सिर्फ दो गज जमीन और
जल्लाद सी सौहारत ।
गर चाहते हो
हंसता खेलता कल
बेख़ौफ़ सड़कें
और आदमियत की जुबां
तो आजाद कर दो
हिंदोस्तान को
सियासत के मज़हबी फ़ितूर से ।
चमक हिन्दोस्तानां की
सोने से नही
हीरे जवाहरातों से नही
ना चमकता ये
मूर्ति मस्जिद और गुम्बदों से
ये चमक इंसानियत की है
शिकस्त खाये दुश्मन के लिए
रोई आँख की है ।