चक्रव्यूह
चक्रव्यूह
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आज की राजनीति भी
बड़ी निराली है,
सियासत के खेल में
बड़े बड़े सूरमा भोपाली हैं।
आम आदमी के वश के बाहर है
राजनीति करना,
सियासती तुणीर जो
उसका खाली है।
राजनीति के खेल में
आमजन पिस रहा है ,
सियासत की चक्की में बस
धीरे धीरे घिस रहा है।
हे प्रभु!हमको बचा लो
हम परेशां हैं बहुत,
सियासत के चक्रव्यूह से
आकर हमें बचा लो।
✍सुधीर श्रीवास्तव