चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित…
फ़ेक पत्थर घाटी की फ़िजा को तुम न करो प्रदुषित,
चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित,
ये जो करवाते है तुमसे पैसो से पत्थरबाज़ी,
ज़रा गौर तुम भी करना ये बात मन में रखना,
क्यों न थामते बेटे इनके हाथों में कोई पत्थर,
क्यों ये भेजते उन्हें विदेश तुम्हे थमाकर पत्थर,
हा रोटी बमुश्किल मिलती यह जानते सभी,
पर मेहनत करो देशहित फ़िर कैसे हो कोई मुश्किल,
थोड़ा तुम भी तो ख़ुद को ज़रा पहचान लो,
कहा उनका करने से पहले अपना अंत:मन भी जानलो,
न थामो ईंट पत्थर माँ भारती को सम्मान दो,
कहता “अरविन्द” होकर “विकल” फिर…
फ़ेक पत्थर घाटी की फ़िजा को तुम न करो प्रदुषित,
चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित…
✍कुछ पंक्तियाँ मेरी कलम से : अरविन्द दाँगी “विकल”