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19 May 2020 · 1 min read

चंद अश़आर

मेरी हस्त़ी की हक़ीक़त तब समझ आई है ,
जबसे मैंने अपने सोच के आईने पर पड़ी धूल हटाई है।

उनकी आंखों में कुछ ऐसी अजीब सी क़शिश है ,
जिसे देखते हैं वो उनका काय़ल हो जाता है।

खुद से क्या रूठता है ? इस जहाँ से रूठ जा ,
शायद तुझे ख़ुदा की कोई सौग़ात मिल जाए।

जो वक्त़ पर ज़िंदगी को समझते नहीं हैं , ज़िंदगी उन्हें समझा जाती है पर तब तक देर हो जाती है।

उस़ूलों की सलीब़ उठाए हम ज़िंदगी की राह पर ख़रामा ख़रामा चलते रहे , पर फ़ितरत के घुड़सवार हमसे आगे निकल गए ।

Language: Hindi
11 Likes · 4 Comments · 303 Views
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