Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jul 2017 · 2 min read

“घिर आई रे बदरिया सावन की” (लेख)

“घिर आई रे बदरिया सावन की”
**********************

जी चाहे बारिश की स्याही,बनूँ कलम में भर जाऊँ।
मन के भाव पिरो शब्दों में,तुझको पाती लिख पाऊँ।।
नेह सरस हरियाली में भर, धानी चूनर लहराऊँ।
रेशम धागे राखी बन मैं,वीर कलाई इठलाऊँ।।

ग्रीष्म की तपिश से शुष्क सृष्टि को बूँदों की सरगम सुनाता मनभावन “सावन” जब छपाक से आता है तो काली बदरी की ओट से लुकाछिपी करता सूरज इ्द्रधनुषीय रंगों की छटा बिखेर कर धरती का आलिंगन करता है।अलसाई प्रमुदित प्रेम के वशीभूत धरा का प्रकृति श्रृंगार करती है।ऐसा प्रतीत होता है मानो हरियाली की मेंहदी रचाए, नीम तले झूले पर पेंग लगाती टोलियाँ, सोलह श्रृंगार कर गीत गाती सखियाँ , मेला देखने को ललचाती अँखियाँ, रक्षाबंधन पर मायके की याद में पाति लिखती बेटियाँ ,प्रीतम की याद में नयनों से नीर छलकाती गोरियाँ सावन की मनभावन ऋतु का स्वागत कर रही हों। यौवन को भिगो देने वाली बारिश और खिलखिलाती प्रकृति में उमंग से उन्मादित कुलांचे मारता मन मयूर भाव -विभोर होकर नाचने लगता है। कोयल के मीठे सुरीले स्वर कानों में ऐसी मंत्रमोहिनी डालते हैं कि तन-मन कंपित हो प्रीतम का राग अलापने लगता है। साहित्यकारों की कलम चल पड़ती है तो कलाकार की तूलिका मूक तस्वीर में रंग भरकर उसे साकार करती जान पड़ती है।उमड़-घुमड़ कर बरसते काले बादलों में दामिनी की कर्कश ध्वनि विरहणी की वीरान ,तन्हा ,लंबी, स्याह रात को नागिन की तरह डँसने चली आती है। फूलों की सेज शूल की तरह चुभन का एहसास कराती सखी से ढेरों सवाल कर बैठती है। देह में अगन लगाती बारिश में प्यासा सावन घर की दहलीज़ से लौट जाता है और पिया मिलन की आस में राह तकती अँखियाँ पथरा जाती हैं। श्रृंगार व विरहा के संगम का अनूठा गवाह सावन गोद में तीज-त्योहारों को झूला झुलाता आता है तो धरती धानी चूनर ओढ कर , दुलहन सी लजाती, घूँघट के पट से झाँकती है। ऐसे में धरती को आगोश में भरकर , यौवन का रसपान करने को आतुर जलमग्न काले बादल झूम कर धरा पर टूट पड़ते हैं। हरी घास व फूल -पत्तियों पर बिखरी ओस की बूँदें प्रकृति की माँग भरकर प्रीतम का स्वागत करती नज़र आती हैं। मायके में सखियों के साथ मेंहदी रचाते हाथ, साजन के साथ गुजारे लम्हों की मनभावन छेड़छाड़ और गुदगुदी करते , मचलते अरमान, थालों में सजते मीठे जालीदार घेवर , बंधेज व लहरिये की साड़ियों में सुसज्जित बनी-ठनी ललना, सरसता से परिपूर्ण मानस अतंस को भिगोते सुहावने गीत सबका मन मोह लेते हैं।केसरिया जामा पहने , कांवरिये गाते-बजाते ,भक्ति की रसधार बहाते भोले की नगरी काशी की ओर चल पड़ते हैं। बाबा विश्वनाथ की अदभुत महिमा का दर्शन पाकर जनमानस भक्ति भाव से भोले का गुणगान करके काशी की धरा पर भक्ति की रसधार बहा देता हैं।नाग पंचमी,रक्षाबंधन, चाँदछट्ट, कजरी तीज, हरियाली तीज जैसे त्योहार सावन को महत्त्वपूर्ण बना देते हैं।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 748 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
किसानों की दुर्दशा पर एक तेवरी-
किसानों की दुर्दशा पर एक तेवरी-
कवि रमेशराज
नीम
नीम
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ग़म
ग़म
Harminder Kaur
कभी भी व्यस्तता कहकर ,
कभी भी व्यस्तता कहकर ,
DrLakshman Jha Parimal
💐प्रेम कौतुक-345💐
💐प्रेम कौतुक-345💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
■ कितना वदल गया परिवेश।।😢😢
■ कितना वदल गया परिवेश।।😢😢
*Author प्रणय प्रभात*
शाहकार (महान कलाकृति)
शाहकार (महान कलाकृति)
Shekhar Chandra Mitra
राह मुश्किल हो चाहे आसां हो
राह मुश्किल हो चाहे आसां हो
Shweta Soni
एक गुनगुनी धूप
एक गुनगुनी धूप
Saraswati Bajpai
गुब्बारे की तरह नहीं, फूल की तरह फूलना।
गुब्बारे की तरह नहीं, फूल की तरह फूलना।
निशांत 'शीलराज'
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
दूसरा मौका
दूसरा मौका
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
** सपने सजाना सीख ले **
** सपने सजाना सीख ले **
surenderpal vaidya
याद  में  ही तो जल रहा होगा
याद में ही तो जल रहा होगा
Sandeep Gandhi 'Nehal'
प्रेम
प्रेम
Ranjana Verma
कुछ राज, राज रहने दो राज़दार।
कुछ राज, राज रहने दो राज़दार।
डॉ० रोहित कौशिक
दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
sushil sarna
ये जो मुहब्बत लुका छिपी की नहीं निभेगी तुम्हारी मुझसे।
ये जो मुहब्बत लुका छिपी की नहीं निभेगी तुम्हारी मुझसे।
सत्य कुमार प्रेमी
फेसबुक
फेसबुक
Neelam Sharma
यह जो तुम बांधती हो पैरों में अपने काला धागा ,
यह जो तुम बांधती हो पैरों में अपने काला धागा ,
श्याम सिंह बिष्ट
काफी लोगो ने मेरे पढ़ने की तेहरिन को लेकर सवाल पूंछा
काफी लोगो ने मेरे पढ़ने की तेहरिन को लेकर सवाल पूंछा
पूर्वार्थ
पितृ दिवस की शुभकामनाएं
पितृ दिवस की शुभकामनाएं
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
याद रहेगा यह दौर मुझको
याद रहेगा यह दौर मुझको
Ranjeet kumar patre
प्यारी-प्यारी सी पुस्तक
प्यारी-प्यारी सी पुस्तक
SHAMA PARVEEN
सियासत
सियासत
हिमांशु Kulshrestha
23/198. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/198. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"देखो"
Dr. Kishan tandon kranti
पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
मनोज कर्ण
मुस्कान
मुस्कान
Surya Barman
*पवन-पुत्र हनुमान (कुंडलिया)*
*पवन-पुत्र हनुमान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Loading...