घर से मुफ़लिस के कोई वक़्ते-गिरानी ले जा
——-ग़ज़ल——
2122 1122–1122–22
1-
मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी ले जा
तेरी खातिर हुई बदनाम जवानी ले जा
2-
ज़ख़्म देकर के यही उसने कहा था मुझसे
मेरे दीवाने ये उल्फ़त की निशानी ले जा
3-
फेर लेते हैं निगाहों को सभी ग़र्दिश में
घर से मुफ़लिस के कोई वक़्ते-गिरानी ले जा
4-
नज़्म बन पाये न ऊला से सुख़नवर तो फिर
शेरे-गालिब की अभी मिसर-ए-सानी ले जा
5-
ग़म हजारों ही सहे हमनें जुदाई में सनम
दर्द की उठती जो दिल में वो रवानी ले जाए
6-
छोड़कर जाती है तो शौक से जाना लेकिन
मेरी खुशियों को भी तू साथ में रानी ले जा
7-
आज नमकीन हुआ आँखों का सागर “प्रीतम”
प्यास मिटती ही नहीं अब तो ये पानी ले जा
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)