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1 Jun 2020 · 16 min read

घर बैठे पढ़ाई : कितनी सही कितनी ग़लत

लेख:
घर बैठे पढ़ाई: कितनी सही कितनी ग़लत
– आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट
प्रस्तुत विषय पर अपनी बात को विस्तार देने से पहले स्पष्ट करना चाहुँगा कि ‘घर बैठे पढ़ाई’ से मेरा अभिप्रायः कोरोना संक्रमण के भय से सरकार द्वारा घोषित ‘लोक डाऊन’ अवधि में संचार के आधुनिक उपकरणों एवं माध्यमों से अकेडमिक शिक्षा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए की गई उस व्यवस्था से है, जिसमें शिक्षक अपने विषय अथवा कक्षा विशेष के छात्र-छात्राओं का समूह बना कर उन्हें उनके मोबाईल फोन अथवा कंप्युटर स्क्रीन पर अध्ययन सामग्री भेजता है और माबाईल फोन से ही फीड बैक लेता है। इसके समानान्तर वह उन्हें अन्य चैनल की जानकारी देते हुए उनके आॅन लाईन प्रसारणों से भी जोड़ता है, या जुड़ने की सलाह देता है। यह सब कितना सफल है अथवा हो सकता है, यह जानने के लिए वह स्वयं तो अपने स्तर पर प्रयास करता ही है, साथ ही उसके प्रयासें पर नज़र रखने और व्यवस्था की क्राॅस चैकिंग के लिए शिक्षा विभाग द्वारा प्रति सप्ताह शिक्षक से आॅन लाईन एक फाॅर्म भरवाने के साथ-साथ छात्र-छात्राओं और उनके माता-पिता अथवा अभिभावकों से भी उसी तरह का किन्तु अलग सूचनाओं से सम्बंधित एक फाॅर्म आॅन लाईन भरवाया जाता है। इसके बाद व्यवस्था की रिपोर्ट तैयार होती है, जो विभाग और सरकार की विभिन्न बैठकों में सांझा होती है और फिर निष्कर्ष पर सहमति अथवा असहमति का प्रचार-प्रसार होता है। पक्ष कहता है कि यह सफल और सही है, तो विपक्ष कहता है कि यह सब असफल और ग़लत है। विपक्ष को कई बार किसी सफल और सही योजना को भी असफल और ग़लत कहते देखा व सुना जा सकता है, किन्तु किसी भी संदर्भ में यदि हम अपनी बात तथ्यों की प्रस्तुति के साथ तर्क सहित कहते हैं और हमारा प्रयास शोधपरक होता है, तो भले ही कोई सच को स्वीकार न करे किन्तु सच सबके सामने आ तो जाता है। साथ ही इस संदर्भ में एक कटु सत्य यह भी है कि जनहित में बनाई गई कोई भी योजना और उसे लागू करने की कोई भी प्रक्रिया ग़लत नहीं होती है। उसका अपना एक निर्धारित लक्ष्य होता है, किन्तु सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार, किसी योजना के सही क्रियान्वयन के नाम पर औपचारिकता और फिर उसी के आधार पर सफलता का ढिंढोरा पीटते हुए ‘चमचों का सम्मान’ और जोड़-तोड़ वाले जोगियों को अपनी प्रशंसा में गीत गाने के लिए प्रेरित करने का अधिकारियों का प्रयास आदि ये तीन-चार ऐसी चीज़ें हैं, जो किसी भी योजना अथवा व्यवस्था की कमियों को किसी भी कीमत पर सामने नहीं आने देती हैं।
कोरोना वायरस के संक्रमण के भय से अध्यापक और बच्चे ‘लोक डाऊन’ के चलते सब अपने-अपने घरों में हैं और उन्हें होना भी चाहिए। अभिभावक भी खुश हैं कि उनके बच्चे आॅन लाईन पढ़ाई कर रहे हैं। पर अब कक्षा में होने वाली पढ़ाई की तुलना में इसके तरीके देखिए – एक ही समय में एक ही ग्रुप में सभी अध्यापकों की ओर से अपने-अपने विषय की अध्ययन सामग्री भेजी जा रही है।… और सच कहूँ, तो एक-आध अपवाद को छोड़ कर ज्यादातर मामलों में यह सामग्री भेजी नहीं, बल्कि इधर-उधर से उठा-उठा कर फैंकी जा रही है और इसका स्वरूप और तरीका भी लगभग परीक्षा भवन में बैठे परीक्षार्थी को बाहर से नकल के लिए सामग्री भिजवाने वाली भीड़ और अंदर फैंकी गई सामग्री के जैसा ही होता है। मतलब कि किसी गाईड से किसी पाठ के प्रश्न और उत्तरों की फोटो अध्यापक ने अपने माबाईल फोन के कैमरे से ली, ग्रुप में पोस्ट की, बच्चों को कह दिया कि लिखो इन्हें, बच्चे लिख कर दिखाते हैं, फिर आॅन लाईन टेस्ट लेने की औपचारिकता भी अध्यापक पूरी करता है। उसके अधिकारियों द्वारा उससे पूछा जाता है कि उसने कितने बच्चों का ग्रुप बना कर कितने बच्चों को पढ़ाया, कितने बच्चों के अभिभावकों से किस-किस फोन नम्बर पर बात की, वह बता देता है। फिर उसी के द्वारा बताए गए नम्बर पर अधिकारी अभिभावकों से सम्पर्क करके घर बैठे पढ़ाई के बारे में पूछते हैं कि अध्यापक पढ़ा रहा है या नहीं? हैरानी की बात है कि ऐसे में एक अभिभावक जो बताता है, उसे तो ज्यादातर मामलों में बिल्कुल सही माना जाता है और एक शिक्षक की बात को ठीक उसी रूप में देखा जाता है कि जैसे वह कोई जिम्मेदार अधिकारी अथवा कर्मचारी न होकर कोई चोर हो और जिस तरह से थाने में किसी चोर द्वारा सम्पर्क नम्बर उपलब्ध करवाने पर जाँच आगे बढ़ती है, वैसे ही उससे नम्बर लेकर उसी के काम की जाँच की जा रही हो कि वह क्या कर रहा है। अगर टीचर पर नज़र रखनी है, तो उसके काम और काम करने के तरीके पर रखिए और इस बात पर विचार कीजिए कि जब एक साथ सभी कक्षाओं को इकट्ठे एक कमरे में बैठाकर विद्यालय में पढ़ाया जाना सम्भव नहीं होता है, तो एक ही समय में सभी विषयों के अध्यापकों द्वारा ग्रुप में अध्ययन सामग्री को पोस्ट किया जाना और हर अध्यापक द्वारा बच्चे पर यह दबाव डाला जाना कि वह उसके विषय का गृह-कार्य करे और अभी दिखाए, कहां तक उचित कहा जा सकता है? बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से देंखें तो यह स्थिति बच्चे के मन और मस्तिष्क दोनों पर बुरा असर डालने वाली कही जा सकती है। यह भी देखा गया है कि जो अध्यापक गाईड या गत वर्ष की अभ्यास-पुस्तिकाओं का सहारा नहीं लेते हैं और अपना पाठ खुद तैयार करके पढ़ाने की कोशिश करते हैं, वो भी कभी-कभी किसी दूसरे अध्यापक द्वारा तैयार पाठ का आदान-प्रदान कर लेते हैं या किसी चैनल से पूर्व प्रसारित अध्ययन सामग्री को लेकर ग्रुप में पोस्ट कर देते हैं। मक़सद होता है, बच्चे की मदद करके घर बैठे उसकी पढ़ाई करवाना, किन्तु ऐसा करने से जो एक बहुत बड़ी हानि होती है, उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है। कक्षा में बच्चा अपने अध्यापक के सीधा सम्पर्क में रहता है, वह उसे ही विषय विशेष का विशेषज्ञ मानता है, पर आॅन लाईन शिक्षा में जब वह देखता है कि उसका टीचर उसे पढ़ाने के लिए किसी और का पढ़ाया हुआ पाठ उसे भेज रहा है, और आॅन लाईन पढ़ाने वाला टीचर उसके क्लास टीचर से कहीं अच्छा पढ़ा रहा है, तो उसका अपने टीचर से विश्वास उठ जाता है और इस उठे हुए विश्वास के बारे में वह किसी को बता भी नहीं पाता है। माता-पिता अथवा अभिभावक को बच्चा पढ़ाई करता नज़र आता है और वह पढ़ाई कर भी रहा होता है, किन्तु पढ़ाई होती नहीं है। ऐसे में बच्चा किसी जन-माध्यम चैनल से आॅन लाईन पढ़ाने वाले टीचर और अपने टीचर के पढ़ाने के तौर-तरीकों पर विचार करते हुए उनकी आपस में तुलना कर रहा होता है। वह सोचता है कि काश, फलां विषय का मेरा क्लास टीचर भी ऐसा ही होता, जैसा कि फलां विडियो लैसन में पढ़ा रहा था। ऐसे में उसे यह बताने और समझाने वाला कोई नहीं होता है कि किसी चैनल पर प्रस्तुत पाठ को एक यांत्रिक व्यवस्था के तहत प्रसारित किया जाता है और प्रसारण से पहले कुछ विशेष उपकरणों की मदद से सब कुछ इतना प्रभावशाली बना दिया जाता है कि अन्य अर्थात सामान्य तरीके से पढ़ाए गए पाठ से वह अपने आप ही आकर्षक एवं प्रभावशाली दिखता है। शायद ही कोई बच्चा अथवा अभिभावक इस बात को जानता हो कि किसी चैनल पर प्रसारित कोई पाठ किसी एक-आध अपवाद को छोड़कर अक्सर किसी टीचर की सौ ग़लतियों के सुधार और दस व्यक्तियों के निर्देशन में तैयार होकर और साथ ही एक टीचर को दिए जाने वाले एक महीने के वेतन जितनी राशि पाठ की तैयारी पर खर्च करने के बाद किसी छात्र-छात्रा तक पहुँचा होता है, जबकि उनके क्लास-टीचर के पास जो कुछ होता है, वो खुद का होता है और वेतन भी कभी समय पर मिल गया तो मिल गया और नहीं मिला तो नहीं मिला। दूसरी बात यह भी कि ज्यादातर बच्चों को विडियो लैसन में अपने टीचर से अच्छा पढ़ाने वाला टीचर और उसका तरीका तो दीख जाता है, किन्तु खुद की बड़ी कमी न उसे दिखाई देती है कि दस बार कहने पर भी वह अपने प्रोविजनल दाखिले के लिए, उस तरह से खुद की लिखाई में आॅन लाईन प्रार्थना-पत्र नहीं भेज पाता है, जैसा कि उसे उसका क्लास टीचर समझाता है। अगर किसी प्रार्थना-पत्र के चार भागों के बारे में अच्छी तरह से समझा कर एक क़ाग़ज़ पर सूचना मांगी है, तो बच्चे उस प्रार्थना-पत्र को एक कागज़ पर लिखकर उसके अलग-अलग भागों की चार फोटो खींच कर चार टुकड़ों में अपने मोबईल से भेजते हैं। जब बार-बार समझाने पर भी ऐसा ही करते हैं और उनके अभिभावकों से इस बारे में कहा जाता है, तो ज्यादातर का ज़वाब यही होता है, कि हम क्या करें आप सिखाइए इसे सही तरीका, कुछ सिखाने के लिए ही तो इसे स्कूल में दाखिला दिलवा रहे हैं। यही नहीं, कुछ ऐसे माता-पिता और अभिभावकों से भी अध्यापक का पाला पड़ता है, जिनकी ओर से दाखिले के लिए आॅन लाईन प्रार्थना-पत्र अंग्रेज़ी में प्राप्त होता है और जब उसमें कोई सूचना नहीं दी गई होती है या किसी सूचना की पुष्टि क्लास टीचर को फोन पर करनी पड़ती है, तो ज़वाब मिलता है कि मास्टर जी मुझे नहीं पता कुछ भी बच्चे ने किससे क्या लिखवा कर भेजा है। जबकि बच्चे की ओर से आॅन लाईन मिली एप्लीकेशन पर माता-पिता के हस्ताक्षर भी अंग्रेजी या हिन्दी में किए हुए होते हैं। क्या ऐसे बच्चों और उनके माता-पिता की ओर से अध्यापक को कोई सहयोग घर बैठे पढ़ाई करने या करवाने के मामले में मिल सकता है। विशेष रूप से ध्यान देने वाला तथ्य है कि जो बच्चा स्कूल में प्रवेश पाने के लिए अर्थात अपने दाखिले के लिए अपना प्रार्थना-पत्र खुद नहीं लिख सकता, क्या वो आॅन लाईन दिया गया होम वर्क खुद पूरा कर लेगा, और उसके माता-पिता को जब यह तक नहीं पता कि उनके बच्चे के दाखिला प्रार्थना-पत्र पर उनके हस्ताक्षरों की जगह किसने हस्ताक्षर किए हैं, क्या वो इस तरफ ध्यान दे सकेंगे कि उनका बच्चा घर बैठकर पढ़ाई कर रहा है और टीचर द्वारा दिया गया होम वर्क खुद करके अपने टीचर को दिखा रहा है कि नहीं। खैर…,
अब एक अन्य बात पर विचार कर लेते हैं कि अमीर दिखने वाले बहुत से अध्यपकों की तरह से बहुत से नहीं, बल्कि ज्यादातर अभिभावक भी इतने ग़रीब होते हैं कि वो अपने बच्चों को आॅन लाईन पढ़ाई के लिए आवश्यक मोबाईल फोन उपलब्ध नहीं करवा सकते, अगर कहीं से पैसा उधार लेकर करवा भी दें, तो फिर इंटरनेट डाटा का खर्च अलग से बढ़ जाता है और जिस किसी के दो या तीन बच्चे किसी एक या अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ते हैं, उन्हें भी माता-पिता के लिए उन्हें अलग-अलग फोन उपलब्ध करवा पाना सम्भव नहीं होता है।… और अगर वो ऐसा नहीं कर सकते तो उनके बच्चे अपने उस टीचर द्वारा करवाई गई पढ़ाई को कैसे करेंगे, जो कहता है कि जो मैंने ग्रुप में भेजा है, उसे अभी का अभी करके मुझे दिखाएं। इधर ग्यरहवीं का हिन्दी वाला टीचर कहता है कि मैंने जो कबीर का परिचय ग्रुप में पोस्ट किया वो अभी का अभी दिखाएं, उधर बारहवीं का अंगेज़ी वाला कहता है कि अंग्रेजी ग्रामर(न कि इंग्लिश ग्रामर) से आर्टिकल के लिए मैंने जो लिंक भेजा है, उस पर जाकर आर्टिकल से सम्बंधित जानकारी लो और अपनी काॅपी में लिखकर मुझे अभी दिखाओ, इधर सातवीं के इतिहास वाला कहता है कि इतिहास के बच्चे अकबर, बाबर और हुमांयु सबको याद करें कल सुबह दस बजे आॅन लाईन टेस्ट लेंगे। साथ ही दसवीं के साईंस वाले टीचर का मैसेज ग्रुप में दिखाई पड़ता है, तो लिखा होता है कि न्यूटन के गति के तीनों नियम याद करो और अपने आस-पास में देखो कि वैसा कहां-कहां हो रहा है, अपनी प्रैक्टिकल भी साथ ही साथ बनाओ, गणित वाला कहता है कि गणित ज़रूरी है, समाज शास्त्र वाला कहता है कि इसके बिना कुछ नहीं है, काॅमर्स वाला कहता है कि यह नहीं सीखा तो व्यापार ठप्प हो जाएगा, इधर आई.टी. और कम्प्युटर वाले कहते हैं कि तकनिकी के दौर में अगर ये विषय नहीं पढ़े तो पिछड़ जाओगे। अब ऐसे में हिन्दुस्तान के बच्चे क्या करेंगे और क्या करेंगे उनके अभिभावक और क्या करें दूसरे अलग-अलग रूप से सभी विषयों के अध्यापक जो चाह रहे हैं कि बच्चे घर बैठे उनके ही उनके विषय का काम करते रहें और जब स्कूल खुलें तो उन्हें उनके विषय में बच्चे तैयार मिलेंगे। ध्यान देने वाला तथ्य है कि बच्चे न इतिहास के होते हैं न अंग्रेज़ी या हिन्दी के, वो सिर्फ उस विषय के छात्र होते जो किसी क्लास को पास करने के लिए उनके द्वारा पढ़ा जाना आवश्यक होता है। आप सोच सकते हैं कि ऐसे में बच्चे इस बात को कैसे समझ सकते हैं कि वो किस विषय को पढ़ें और किस को छोड़ें।.. बच्चा एक, फोन एक और विषय कम से कम पाँच या छः। सोचने वाली बात है कि ऐसे में वह करे तो क्या करे और क्या न करे। यही नहीं, अगर दो बहन-भाइयों के बीच एक मोबईल फोन पढ़ाई के लिए इस्तेमाल होता है, तो भी स्थिति काफी खराब हो जाती है, और जब बच्चे अलग-अलग कक्षाओं के हों तो फिर तो एक ही मोबाईल में अलग-अलग ग्रुप में कम से कम बारह विषयों की अध्ययन सामग्री और होम वर्क का ढेर। और होम वर्क भी ऐसा कि जैसे कचरे में नकली नोट किसी ने फैंक कर बच्चों से कह दिया हो कि चलो ढूंढो इसमें नोट हैं और जिसे जो मिलेगा वो उसी का हो जाएगा। कहने की आवश्यकता नहीं कि बच्चों के लिए इस तरह के होम वर्क का ढेर ज्यादा से ज्यादा दस या पन्द्रह मिनट से लेकर एक घण्टे तक में लगाकर विषय के टीचर आॅफ लाईन हो जाते हैं। कुछ तो बस इसमें इतनी ही आहुती डालते हैं कि प्यारे बच्चो आज अपनी पुस्तक से पाँच का पाठ शुद्ध उच्चारण के साथ पढ़ो और कुछ समझ में न आए तो मुझे बताओ। खैर, तरीका होता है हर किसी का अपना-अपना, दूसरा कोई कर भी क्या सकता है। पर ध्यान देने वाली बात यह है कि घर बैठे पढ़ाई करने वाले बच्चों में से ज्यादातर हैं कि अपने अध्यापकों की बात मान कर दिन भर ऐसे और इस तरह दिए गए होम वर्क से यही छांटते रहते हैं कि किस अध्यापक ने क्या काम दिया है। ऐसे में उनकी स्थिति कचरा बीनने वाले बच्चों से किसी भी तरह कम नहीं होती है। उनकी उंगलियां दिन भर अपने मतलब की सामग्री ढूंढने के लिए मोबाईल स्क्रीन पर चलती रहती हैं और ऐसे में उनके बिना मतलब की सामग्री भी पाए जाने की सम्भावना बनी रहती है और कोई भी चमकती चीज़ किसी कांच के टुकड़े की तरह या इस्तेमाल करके फैंकी गई सुई की तरह उन्हें चुभ सकती है और उनका ही नहीं, बल्कि उनके अभिभावकों का विश्वास भी घर बैठे इस तरह की पढ़ाई से उठ सकता है। ऐसे में भले ही किसी अध्यापक की ग़लती न हो किन्तु विश्वास तो उसी पर से उठता है कि ग्रुप में ग़लत सामग्री पोस्ट हुई तो हुई कैसे। ऐसे में अध्यापक भी यह बात किस-किस को और कैसे समझाए कि सबको एक-साथ जोड़ने के लिए कभी-कभी ग्रुप ऐडमिन को भी सभी के द्वारा ग्रुप में सामग्री पोस्ट करने के विकल्प को खोलना पड़ता है और ऐसे में ही कोई कुत्ता-बिल्ली प्रवृत्ति वाला व्यक्ति ग्रुप में घुस कर किसी साईबर क्राईम को जन्म दे जाता है। अगर ऐसा न हो तो भी इस बात का दूसरा पहलू एक यह भी है कि उम्र की नदी जब गति पकड़ रही होती है, तो उसका बहाव किनारों का साथ छोड़ कर बादलों के ख्वाब देखता है।… मतलब कि इस उम्र में बच्चों को सही नहीं, बल्कि ग़लत चीज़ें अधिक आकर्षित करती हैं और कई बार उनके पास ये ग़लत चीज़ें सही के आवरण में चली आती हैं या फिर यूं समझिए कि ग़लत चीजों का व्यापार करने वाले सही की आड़ में गलत मसाला उनके पास इसलिए भेज देते हैं कि यदि बच्चे एक बार उनके चैनल से जुड़ें, तो जुड़े ही रहें। कोई पड़ोसी भी यदि किसी के होनहार बच्चे को बिगाड़ता है, तो वह बड़े प्यार से और इतने प्यार से उसके साथ दोस्ताना सम्बंध बनाता है कि बच्चा अपने माता-पिता से अधिक पड़ोसी पर विश्वास करने लगता है और उसकी बात मानने लगता है। ऐसे में वह बच्चे को धुम्रपान से लेकर दारू-शराब और जूए तक की लत लगा सकता है और जब बच्चे के माता-पिता अथवा अभिभावक को पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यही हाल विभिन्न चैनलस का भी अपनी सामग्री प्रसारित करने के मामले में होता है। ज़रूरी नहीं कि सभी चैनल बच्चों को आकर्षित करने के लिए क़ानूनी तौर पर उनके लिए ग़लत कही जाने वाली सामग्री ही किसी लिंक के ज़रिए उन तक पहुँचाते हों, वो उनकी रुचि को पहचान कर किसी विडियो गेम को भी भेज सकते हैं और ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के चक्कर में भी उन्हें डाल सकते हैं या फिर किसी पकवान को बनाने की विधि बच्चे के मोबाईल पर जाने वाली अध्ययन सामग्री के लिंक से जोड़ कर उस तक पहुँच बना कर उसका ध्यान पढ़ाई से भटकाया जा सकता है। कान में ईयर फोन की लीड और सामने मोबाईल स्क्रीन पर पढ़ाई से भटके हुए बच्चे का गहरा ध्यान, माता-पिता अथवा अभिभावक सोचते हैं कि उनका बच्चा पढ़ रहा है और पूछो तो भी बच्चा कहता है कि अपने साथ पढ़ने वालों से ग्रुप में सामग्री का आदान-प्रदान कर रहा हूँ या कर रही हूँ, किन्तु असल में हो रहा होता है कुछ और। इसे कैसे नियंत्रण करना है, इसकी जानकारी भी टीचर अथवा माता-पिता से ज्यादा आज के बच्चों को होती है। अतः उनकी इस तरह की हर्कतों पर परमानेन्ट लोक लगने से पहले, वो इस लाॅक की चोर चाबी बनवा लेते हैं और घर बैठे पढ़ाई का कार्य व्यापार खूब से खूब तेज़ चलता दिखाई देकर भी दिन-प्रतिदिन घाटे की ओर जाता रहता है। इसके विपरीत जो बच्चे असल में पढ़ाई करते हैं और जो टीचर सही तरीके से पढ़ाई करवाते हैं या करवाना चाहते हैं, उनके मोबाईल फोन में भी लगातार कितना डेटा स्टोर हो सकता है और एक टीचर एक दिन में अपने कितने छात्र-छात्राओं का होम वर्क सही तरीके से जाँच कर उन्हें अपनी संतोषजन प्रतिक्रिया दे सकता है? अगर नही ंतो यह सब औपाचारिकता ही है और इस औपचारिकता में विश्वास रखने और वाले ही कुछ टीचर आॅन लाईन पढ़ाई करवाने के नाम पर घर बैठे ही सुनहरे अक्षरों में छपे अपने नाम के बड़े-बड़े सम्मान-पत्र पा जाते हैं और उन्हें ये सम्मान-पत्र दिलवाने वाले अधिकारी भी स्वतंत्रता दिवस अथवा गणतंत्र दिवस पर इसलिए सम्मानित होते देखे जा सकते हैं कि उन्होंने सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में सहयोग दिया होता है। जबकि इस संदर्भ में सच यह है कि जो सही व्यक्ति सही तरीके से अपने काम में लगे होते हैं, उनमें से ज्यादातर के नाम इस तरह के किसी सम्मान अथवा प्रशंसा-पत्र के लिए प्रशासन अथवा सरकार तक कभी नहीं भेजे जाते हैं। कई बार तो व्यवस्था से जुडे़ बहुत से अधिकारियों को भी तभी पता चलता है, जब किसी को मिले किसी सम्मान अथवा प्रशंसा-पत्र की कोई प्रति अथवा आयोजन की कोई फोटो सोशल मीडिया पर इधर से उधर बधाइंया बटोरती घूम रही होती है। घर बैठे पढ़ाई करवाने के अनिवार्य आदेशों से सम्बंधित विभागीय पत्रों की प्रतियों और एक ही दिन में फीड बैक देने अथवा अभिभावकों को भी फोन करके फीड बैक देने से सम्बंधित मैसेज तो लगभग हर टीचर के पास पहुँच जाते हैं किन्तु इस तरह के सम्मान अथवा प्रशंसा-पत्र के लिए आवेदन करने अथवा नाम भेजने-भिजवाने से सम्बंधित सूचना वाले पत्र उन्हीं तक पहुँचते हैं, जिन्हें सममान देना अथवा दिलवाना होता है।
असल में यह हाल किसी की कच्ची सगाई को गुप्त रखने और फिर अचानक से मेकअप करके मुंह दिखाई और बधाई लेने वाली दुल्हन के जैसा ही होता है। किसी भी योजना के क्रियान्वयन से सामने आई सारी कमियां रिश्ता तय करवाने वाले बिचैलियों की तरह योजना बनाने और उसे लागू करने का सुझाव देने वाले अधिकारियों द्वारा छुपा ली जाती हैं। फिर अचानक से योजना को लागू कर दिया जाता है और अपने छपास रोग को ध्वल कपास में बदलने का हुनर जानने वाले कुछ ऐसे लोगों को अखबारों में दिखावे की फोटो और विवरण के साथ छपे समाचारों के आधार पर सम्मानित भी कर दिया जाता है, जो जोड़-तोड़ वाले जोगियों की तरह इधर की लाईन उधर फिट करके योजना की सफलता के गीत गाने में माहिर होते हैं और शासन हो या प्रशासन, जो अधिकारी अथवा नेता कुर्सी पर होता है उसके गीत गाते रहते हैं। जबकि असल सच्चाई किसी विषय पर गहन शोध और उपलब्ध तथ्यों के तर्क सहित प्रस्तुतिकरण से ही सामने आती है। अन्यथा लागू करने के समय पर तो प्रत्येक योजना मण्डप में जाने के लिए मेकअप करके आईने के सामने बैठी उस दुल्हन की तरह ही होती है, जिसके चेहरे पर यदि कोई छोटा नहीं, बल्कि बहुत बड़ा सा भी दाग था, तो वो भी मेकअप ने छुपा लिया है और यदि उसकी सहेलियों के पास उसका कोई बड़ा राज भी रहा है, तो वो भी आज जनहित के नाम पर चुप्पी साध लेने वाले विपक्ष की तरह चुप हैं और मंगल गीत गाते हुए उसे मण्डप तक ले जाती हैं। ऐसे में जब वर पक्ष की नज़र भी दुल्हन के साज-सिंगार और मेकअप से आकर्षक बने उसके चेहरे पर टिकी होती है, तो वधू पक्ष को पड़ी ही क्या है, कि वह बिना मतलब के अपनी बेटी के अवगुणों का बखान करे। मतलब कि लागू होने से पहले किसी योजना की कमियों का किसी को पता भी होता है, तो भी कोई नहीं बताता है।
अब सवाल पैदा होता है कि अगर ऐसा है अथवा हो सकता है, तो इस तरह की व्यवस्था की कमियों को दूर करने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा? अतः बहुत ही साधारण से उदाहरण से वस्तु स्थिति को स्पष्ट करना चाहुँगा कि गाँव में आज भी गली-मुहल्ले के साथ लगते किसी चौक में कुएं इसलिए खुदवाए जाते हैं कि लोग उनसे ठण्डा और ताज़ा पानी अपने इस्तेमाल के लिए निकाल सकें। धर्म के नाम पर कुएं खुदवा कर उन्हें जनता को समर्पित करने वाला कोई भी व्यक्ति अपने नाम का पत्थर कुएं की दीवार पर लगवाते वक्त उस पर यह नहीं लिखवाता है कि सावधान इसमें कूदने से मौत भी हो जाएगी। कोई जान बूझकर कुंए में कूद कर मर भी जाता है, तब भी तर्क यही दिया जाता है कि कुआं तो ठण्ठा पानी पीने के लिए खोदा गया था। अगर कोई चेतता है, तो भी तब चेतता है, जब इस तरह के कई हादसे हो चुके होते हैं या फिर किसी बड़े आदमी का बड़ा नुक्सान होता है। तब कुएं पर जाल लगवा कर कुंए का मुंह बंद कर दिया जाता है। मतलब कि व्यवस्था की कमी को ढक दिया जाता है। मगर क्या ऐसे में जो लोग जनहानि उठा चुके हैं, उनके किसी हर्ज़े की पूर्ति किसी भी तरह हो सकती है। शायद नहीं। इसलिए आवश्यक है कि मज़बूरीवश अपने घर-आंगन में खुदवाए गए घर बैठ कर पढ़ाई करने व करवाने वाली योजना के इस कुंए पर खुदवाने वाले भी नज़र रखें और पानी भरने और भरवाने वाले भी, अन्यथा जब तक इस पर जाल लगवाने की बात सिरे चढ़ेगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
– आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट,
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग,
कोंट रोड़, भिवानी-127021(हरियाणा)
मो. नम्बर-9416690206
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मौलिकता प्रमाण-पत्र
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत लेख मेरी मौलिक अप्रकाशित व अप्रसारित रचना है।यदि किसी पत्र-पत्रिका के संपादक पूरे लेख अथवा इसके किसी अंश का कहीं उपयोग किया जाता है, तो वह इसकी सूचना मुझे अवश्य दे I

भिवानी , दिनांक 27 मई 2020 – आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट,
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग,
कोंट रोड़, भिवानी-127021(हरियाणा)
मो. नम्बर-9416690206

Language: Hindi
Tag: लेख
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