घर की शोभा:गृहलक्ष्मी
घर की शोभा:गृहलक्ष्मी
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गृहलक्ष्मी!कहने सुनने में कितना अच्छा लगता है,परंतु सच्चाई इससे कोसों दूर है।आप सहमत हैं तो भी,नहीं हैं तो भी सच्चाई को आप झुठला नहीं सकते।हाँ अपने मुँह मियां मिट्ठू की कहावथ को जरूर रेखांकित कर सकते हैं।
विचार करने की जरूरत है कि क्या महिलाओं को वास्तव में गृहलक्ष्मी जैसा सम्मान दे रहे हैं।शायद नहीं।सच्चाई तो यह है कि बहुतायत में हम उन्हें खाना कपड़ा के बदले मुफ्त की नौकरानी ही समझते हैं।
पत्नियां क्या कुछ नहीं सहती, बावजूद इसके घर,परिवार, बच्चे सबकी जिम्मेदारी बिना रूके उठाने को विवश हैं।उनकी किसी भी समस्या के प्रति आज भी संवेदनशील भाव कम ही देखने को मिलता है।घरेलू काम व बच्चों की देखभाल में हमारी भागीदारी न के बराबर है।ऊपर से आज जब औरतें हर क्षेत्र में झंडे गाड़ रही हैं तब भी घरेलू हिंसा, दहेज़ उत्पीड़न, दोयम दर्जे का व्यवहार बंद नहीं हो रहा है।ऐसा सिर्फ़ घरेलू महिलाओं के साथ ही होता हो,ऐसा भी नहीं है,नौकरी पेशा औरतें भी उपरोक्त दुश्वारियों से मुक्त नहीं हैं।
विडम्बना देखिए कि हम औरतों को लक्ष्मी सरीखी तो चाहते हैं परंतु खुद उन्हें गृहलक्ष्मी जैसा सम्मान देने में भी हिचकिचाते हैं।हमारे लिए वे कोल्हू के बैल से अधिक अहमियत नहीं रखती हैं।
एक परिवार के तौर पर भी हम यदि औरतों को यथोचित सम्मान देने का संकल्प कर ले लें तो लगभग समस्या अपने आप खत्म हो जायेगी।
?सुधीर श्रीवास्तव