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13 Nov 2019 · 1 min read

घरेलू हिंसा

मैं बस से उतर कर
जा रहा था घर
कि राह में मिली
श्रीमतीजी
उदास-गमगीन
चेहरा लिए मलीन
जा रही थी एसटी बूथ
फोन करने इंदोरा चौक
मेरे घर यानी उसकी ससुराल.
कारण- मैंने छोटे से विवाद पर गुस्से
में तोड़ दिया था उसका फोन
मेरे इस दुष्कृत्य से आहत
वह दो दिनों से थी मौन.

सच में होती हैं महिलाएं
घरेलू हिंसा की शिकार.
हम पुरुष झट लगा देते हैं उन पर
संकीर्ण होने की तोहमत
और ऐसा कर
न्यायोचित ठहराते हैं
अपना दुव्यर्वहार.

महिलाएं दुखित
होती रहती हैं
खटती रहती हैं
मोमबत्ती सी जलती रह जाती हैं

अगर हम पुरुष हैं
सचमुच ज्ञानी-ध्यानी
फिर क्यों नहीं बनाते
उन्हें भी ज्ञानी-विज्ञानी
-29 जनवरी 2013
सोमवार, दो. 2 बजे

Language: Hindi
5 Likes · 398 Views
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