घमण्ड
घमण्ड
ज़मीन और कमीनो में ही अभिमान का
गिद्ध सवार होता है,,,
जब आ जाता इनका पतन तब ही ऐसा होता है।
चींटी क्या चढ़ी पहाड़ पर,
पहाड़ को ही छोटा समझने लगी,,
नदी की धार को क्या तिनका रोक पता है।
ऊँट किस करवट बैठेगा ये कोई नही जान पाता है,,
गगन में उड़ने वाला पंछी भी दाना चुगने धरा पर
आता है।
घमंडियो का घमण्ड कहाँ हमेशा टिक सका है
अच्छे अच्छे अमीरों को ये रंक बना जाता है।
घमण्ड के वसीभूत आंगे राजा महाराजा ओ
का राज्य चौपट हो गया,,,
क्या इन्हें लंका नरेश का हश्र पता नही है।
आसमाँ को एक नजर क्या ऊपर देख लिया,,
अभिमान में आकर ये नाक सिकुड़े,
ब्रह्मांड की दूरी नापने चले है।
दौलत और शौहरत का जिन्हें अभिमान हुआ है,,
धीरे धीरे ही सही पर हर बार इनका घमण्ड चूर
हुआ है।
अगर मिल जाये इंशान तुझे दुनिया की भले ही
सारी दौलत,,
कर नेक काम और देख ऐसे ही लोगो का जग
में नाम हुआ है।।।
गायत्री सोनु जैन