” घनेरी जुल्फें घटा सी छाई ” !!
हवा में नमी है ,
बिखरी है खुशबू !
मौसम है बहका ,
जगा ऐसा जादू !
गज़ल सी काया –
अदा रुबाई !!
बंद हैं पलकें ,
राज़ हैं गहरे !
अधर पाँखुरी से ,
हैं गात रूपहरे !
निखरा है यौवन –
लिए अंगड़ाई !!
खुद में हो खोये ,
कैसा सितम है !
तलाश ये कैसी ,
बिसुरे से हम हैं !
डूबो न ज़्यादा –
लिए गहराई !!
बेखबर से तुम ,
बाख़बर हैं हम !
चाहतों के दौर ,
ना होगें ख़तम !
मुस्कराये तुम –
निधियाँ पाई !!