घनाक्षरी
सारे जग में प्रकाश ,होता जग में विकास ।
और लोगों का कयास, दूर अब कीजिए।
ज्ञान का आलोक दे दें ,अंधकार दूर करें।
अमृत की बूँदें पिरो, ऐसा वर दीजिए।
जन-जन प्यार रहे,शत्रु सब हार रहे।
धर्म का ये सार रहे, बंधु कुछ सीखिए।
मित्रता का धर्म धार, शत्रु पर करें वार।
मित्र मित्र सारे मिलें , विश्व बंधु बनिए।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”