घनाक्षरी
जग में आलोक भरे, अंतस उजास करे।
मन की अशान्ति झरे, चंद्रप्रभा दीजिए।
पुष्पों की बहार मिले, अंजुमन यूं ही खिले,
ममता व प्यार मिले, स्नेह सब कीजिये।
खेल-खेल में उमंग, लेन-देन में तरंग।
बिंदु प्रभा को दबंग ,आज मान लीजिए।
प्रेम करता प्रणाम, चतुर्दिक नाम नाम,
मधुरस का ही जाम, खुलेआम पीजिए।
–डॉ० प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रेम’