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22 Jul 2020 · 1 min read

घनाक्षरी

जग में आलोक भरे, अंतस उजास करे।
मन की अशान्ति झरे, चंद्रप्रभा दीजिए।

पुष्पों की बहार मिले, अंजुमन यूं ही खिले,
ममता व प्यार मिले, स्नेह सब कीजिये।

खेल-खेल में उमंग, लेन-देन में तरंग।
बिंदु प्रभा को दबंग ,आज मान लीजिए।

प्रेम करता प्रणाम, चतुर्दिक नाम नाम,
मधुरस का ही जाम, खुलेआम पीजिए।

–डॉ० प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रेम’

2 Comments · 354 Views
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