घनाक्षरी (झोल है )
एक अनुभूति
मनहरण घनाक्षरी
चाहते बचाना जिसे,बचा नहीं पाए उसे,
नहीं मिली आक्सीजन,क्योंकि अनमोल है ।
यहाँ मरे वहाँ मरे, मरते ही जा रहे हैं,
बेचारे गरीबों की तो,नैया डाँवाडोल है ।
अनुकूल स्वर में अभी तो नहीं बज रहा,
बहुत बड़ा है ढोल,ढोल में भी पोल है ।
चारों ओर हाहाकार सुन सुन लग रहा,
कहीं न कहीं से तो व्यवस्था में झोल है ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश